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जंगल की राह या मौत की गली?… भालू के साये में हौसलों की परीक्षा ले रहे नौनिहाल!

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उत्तराखंड में भालू का आतंक लगातार बढ़ रहा है और कई इलाकों में लोगों का दैनिक जीवन प्रभावित हो गया है। चमोली जिले में तो हालात ऐसे हैं कि भालू रोजाना दिखाई दे रहे हैं, जिससे ग्रामीणों में भय का माहौल बना हुआ है। इसका सबसे ज्यादा असर स्कूल जाने वाले बच्चों पर पड़ रहा है। दूरस्थ गांवों के बच्चे कई किलोमीटर पहाड़ी रास्तों से होकर स्कूल पहुंचते हैं, जहां भालू के खतरे से बचने के लिए वे लगातार सीटियां बजाते और शोर मचाते चलते हैं। स्कूल से लौटते वक्त भी वे इसी तरह सावधानी बरतते हैं ताकि किसी जंगली जानवर का सामना न हो।

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अभिभावक तब तक चिंतित रहते हैं जब तक बच्चे सुरक्षित घर नहीं लौट आते। कई गांवों में माता-पिता समूह बनाकर बच्चों को स्कूल छोड़ने और वापस लाने जाते हैं। गोपेश्वर, ज्योतिर्मठ और पोखरी विकासखंड के अधिकांश क्षेत्रों में भालू की सक्रियता काफी बढ़ गई है, जिससे ग्रामीणों की चिंता और बढ़ गई है। दशोली ब्लॉक के स्यूंण गांव से जनता इंटर कॉलेज बेमरू जाने वाले छात्रों को प्रतिदिन चार से पांच किलोमीटर लंबे जंगली रास्ते से होकर गुजरना पड़ता है।

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बच्चे समूह में चलकर, जोर से आवाजें करके और सीटियां बजाकर खुद को सुरक्षित रखने की कोशिश करते हैं। स्थानीय निवासी धीरेंद्र राणा का कहना है कि हर दिन बच्चों की सुरक्षा को लेकर परिवारजन परेशान रहते हैं और प्रशासन को तत्काल सुरक्षा के उचित इंतजाम करने की जरूरत है।

उधर, ज्योतिर्मठ ब्लॉक के थैंग गांव में भालू अब तक 50 से अधिक मवेशियों को मार चुका है। यहां स्थित हाईस्कूल में धीवाणी, कांडखोला और ग्वाड़ गांवों के करीब 20–25 छात्र-छात्राएं पढ़ने आते हैं, जिन्हें दो किलोमीटर का जंगली रास्ता पार करना पड़ता है। क्षेत्र पंचायत सदस्य रमा देवी और ग्राम प्रधान मीरा देवी ने बताया कि प्राथमिक विद्यालय के छोटे बच्चों को तो अभिभावक समूह में छोड़ने जाते हैं, लेकिन बड़े बच्चों की सुरक्षा को लेकर हमेशा चिंता बनी रहती है क्योंकि उन्हें यह रास्ता खुद तय करना पड़ता है।

हिल दर्पण डेस्क

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