उत्तराखंड सरकार ने नगर निकायों की आमदनी और खर्च को व्यवस्थित करने के लिए पहली बार एक नीति बनाने का निर्णय लिया है।
इस नीति के लागू होने के बाद, नगर निकायों के नेता बजट के बिना घोषणाएं नहीं कर सकेंगे और तय सीमा से अधिक खर्च नहीं कर सकेंगे। वर्तमान में, कई नगर निकाय अपनी कमाई की कमी के कारण पूरी तरह से सरकार की वित्तीय सहायता पर निर्भर रहते हैं, और इन निकायों के बजट खर्च की व्यवस्था स्पष्ट नहीं है।
सरकारी फंड के अलावा, नगर निकाय अपनी आय को या तो विकास कार्यों में पूरी तरह खर्च कर देते हैं या वेतन और भत्तों पर ही खर्च कर देते हैं। चुनावों के दौरान अक्सर नेताओं और पार्षदों द्वारा बजट की अनुपलब्धता के बावजूद घोषणाएं की जाती हैं, जो या तो पूरी नहीं होतीं या बजट पर भारी बोझ डालती हैं। इस समस्या को सुलझाने के लिए शहरी विकास विभाग ने बजट खर्च और राजस्व प्राप्ति की एक नई नीति तैयार की है, जो कैबिनेट के अनुमोदन के बाद लागू होगी।
सरकार की ओर से हर बजट में नगर निकायों के लिए 10 करोड़ रुपये का प्रावधान किया जाता है, जबकि बदरीनाथ, केदारनाथ और गंगोत्री जैसे अनिर्वाचित निकायों के लिए 2-2 करोड़ रुपये निर्धारित किए जाते हैं।
2023 के बजट में नगर निगमों के लिए 392 करोड़ 96 लाख, नगर पालिकाओं के लिए 464 करोड़ 37 लाख और नगर पंचायतों के लिए 114 करोड़ 70 लाख रुपये का प्रावधान किया गया था। इस वर्ष के बजट में भी लगभग इसी तरह के प्रावधान किए गए हैं। केंद्रीय वित्त आयोग से भी निकायों को करीब 450 करोड़ रुपये प्राप्त होते हैं।