उत्तराखंड में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव को लेकर लगातार किसी न किसी प्रकार की पेचीदगियां सामने आ रही हैं। अब राज्य निर्वाचन आयोग की ओर से जारी आंकड़ों में बड़ा भ्रम सामने आया है, जिसमें 159 प्रत्याशी आंकड़ों से *गायब* पाए गए हैं। इससे आयोग की कार्यप्रणाली और डेटा प्रबंधन पर सवाल उठने लगे हैं।
त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव के पहले चरण की प्रक्रिया 21 जून को अधिसूचना जारी होने के साथ शुरू हुई थी। इसके बाद आयोग ने 28 जून को संशोधित अधिसूचना जारी की और नामांकन की प्रक्रिया 2 जुलाई से 5 जुलाई तक पूरी करवाई गई।
6 जुलाई को राज्य निर्वाचन आयोग ने प्रेस नोट जारी कर जानकारी दी कि 66,418 पदों के सापेक्ष 63,812 प्रत्याशियों ने नामांकन दाखिल किया। लेकिन 8 जुलाई को आयोग ने नया प्रेस नोट जारी करते हुए कहा कि कुल नामांकन की संख्या 63,569 है। यानी सिर्फ दो दिन में आंकड़ों में 243 की गिरावट आ गई।
आयोग द्वारा 14 जुलाई को जारी अंतिम प्रेस नोट में बताया गया:
5,019 प्रत्याशियों ने नाम वापसी की
22,429 प्रत्याशी निर्विरोध चुने गए
32,580 प्रत्याशी चुनावी मैदान में हैं
3,382 नामांकन पत्र निरस्त किए गए
इन सभी आंकड़ों को मिलाकर देखें तो कुल 63,410 प्रत्याशी चुनाव प्रक्रिया में शामिल रहे। जबकि 8 जुलाई को आयोग ने 63,569 प्रत्याशियों द्वारा नामांकन दाखिल किए जाने की बात कही थी। इस हिसाब से 159 प्रत्याशी आंकड़ों से नदारद हैं।
इस तरह की विसंगति से साफ है कि राज्य निर्वाचन आयोग खुद अपने आंकड़ों के जाल में उलझा हुआ नजर आ रहा है। यह न केवल पारदर्शिता और प्रशासनिक दक्षता पर सवाल उठाता है, बल्कि चुनाव प्रक्रिया की विश्वसनीयता पर भी असर डाल सकता है।
चुनावी मामलों के जानकारों का कहना है कि इतने बड़े चुनावी आयोजन में डेटा का सटीक और पारदर्शी होना बेहद आवश्यक है। यदि आयोग अपने ही आंकड़ों को लेकर स्पष्ट नहीं है, तो यह स्थिति मतदाताओं और प्रत्याशियों दोनों के लिए भ्रमकारी हो सकती है।