उत्तराखंड की राजनीति एक बार फिर गरम हो गई है। पूर्व मुख्यमंत्री की सोशल मीडिया पोस्ट ने नया विवाद खड़ा कर दिया है। अपनी पोस्ट में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने लिखा कि ब्राह्मण समाज स्वभाव से उदार होता है, इसलिए कांग्रेस संगठन में ब्राह्मण चेहरों को अधिक जिम्मेदारी दी जानी चाहिए, और यह पहल उत्तराखंड से शुरू होनी चाहिए।
हरीश रावत के इस बयान के बाद प्रदेश की राजनीति में ब्राह्मण बनाम अन्य वर्गों की बहस छिड़ गई है। इस समय कांग्रेस संगठन के पुनर्गठन की प्रक्रिया चल रही है, कई जिलों में नए अध्यक्षों की घोषणा हो चुकी है जबकि कुछ नामों पर चर्चा जारी है।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि हरीश रावत का यह बयान केवल निजी विचार नहीं है, बल्कि यह संगठन में अपनी पकड़ मजबूत करने और ब्राह्मण मतदाताओं को साधने की कोशिश हो सकती है।
भाजपा ने हरीश रावत पर जातिवादी राजनीति करने का आरोप लगाया है। भाजपा प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र भट्ट ने कहा कि हरीश रावत समाज को बांटने का प्रयास कर रहे हैं और कांग्रेस में पदों का बंटवारा जाति के आधार पर करने की बात कह रहे हैं, जिससे पार्टी के अंदर भी मतभेद बढ़ सकते हैं।
कांग्रेस के अंदर भी इस बयान को लेकर असहमति देखने को मिली। पार्टी के वरिष्ठ नेता सूर्यकांत धस्माना ने कहा कि कांग्रेस जातिवाद की राजनीति नहीं करती। उन्होंने याद दिलाया कि राज्य में नारायण दत्त तिवारी और विजय बहुगुणा जैसे ब्राह्मण नेता पहले भी मुख्यमंत्री रह चुके हैं। उनके मुताबिक, हरीश रावत का यह बयान पार्टी के भीतर असहजता पैदा कर सकता है।
विशेषज्ञों का कहना है कि यह बयान कांग्रेस संगठन में चल रही खींचतान का हिस्सा भी हो सकता है। नए जिलाध्यक्षों और पदाधिकारियों की नियुक्ति को लेकर पार्टी में आंतरिक मतभेद हैं, और हरीश रावत इसी बहाने अपनी भूमिका फिर से मजबूत करने की कोशिश कर रहे हैं।
कुल मिलाकर, हरीश रावत की इस पोस्ट ने उत्तराखंड की राजनीति में नया जातीय विमर्श खड़ा कर दिया है। भाजपा इसे कांग्रेस की विभाजनकारी राजनीति बता रही है, जबकि कांग्रेस के भीतर भी इसे लेकर मतभेद उभर आए हैं।


