उत्तराखंड में अगस्त माह के दौरान हुई भीषण बारिश ने उत्तरकाशी, चमोली, रुद्रप्रयाग और अन्य पर्वतीय जिलों में आपदा जैसी स्थिति पैदा कर दी। मूसलाधार बारिश, भूस्खलन, बाढ़ और बादल फटने की घटनाओं ने जन-जीवन को बुरी तरह प्रभावित किया। आपदा प्रबंधन विभाग के अनुसार, इस प्राकृतिक आपदा से राज्य को अब तक 1944.15 करोड़ रुपये का नुकसान हो चुका है।
राज्य सरकार ने इस नुकसान की भरपाई के लिए केंद्र सरकार से 5702.15 करोड़ रुपये के आर्थिक पैकेज की मांग करते हुए एक मेमोरेंडम सौंपा है। इसके बाद भारत सरकार की एक अंतर-मंत्रालयी टीम 8 सितंबर को उत्तराखंड पहुंची और प्रभावित जिलों का स्थलीय निरीक्षण कर हालात का जायजा लिया।
बुधवार को यह केंद्रीय टीम दिल्ली लौटने से पहले मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से सचिवालय में मिली। मुख्यमंत्री ने कहा कि उत्तराखंड आपदाओं की दृष्टि से बेहद संवेदनशील राज्य है, जहां हर साल मानसून के दौरान भूस्खलन, बाढ़, और जलभराव जैसी गंभीर समस्याएं सामने आती हैं।
सीएम धामी ने इस बात पर जोर दिया कि राष्ट्रीय स्तर पर वैज्ञानिक संस्थानों को मिलकर एक सशक्त पूर्वानुमान प्रणाली विकसित करनी चाहिए, जिससे नुकसान को समय रहते रोका जा सके। उन्होंने बताया कि इस साल अत्यधिक बारिश के कारण जनहानि के साथ-साथ संपत्ति, खेती योग्य जमीन और बुनियादी ढांचे को भारी नुकसान पहुंचा है। पर्वतीय क्षेत्रों में भूस्खलन और बादल फटने की वजह से कई इलाकों में जमीन हमेशा के लिए बर्बाद हो चुकी है, जिन्हें दोबारा उपयोग में लाना संभव नहीं।
गृह मंत्रालय के संयुक्त सचिव आर. प्रसन्ना के नेतृत्व में आई इस टीम ने उत्तरकाशी, रुद्रप्रयाग, चमोली, बागेश्वर, पौड़ी गढ़वाल और नैनीताल जिलों के कई प्रभावित इलाकों का दौरा किया। टीम ने स्थानीय लोगों से बातचीत कर फीडबैक भी लिया।
टीम में शामिल वरिष्ठ अधिकारियों ने राज्य सरकार द्वारा किए जा रहे राहत एवं पुनर्वास कार्यों की सराहना की। विशेष रूप से मृतकों के परिजनों और मकान पूरी तरह क्षतिग्रस्त होने पर 5 लाख रुपये की तात्कालिक सहायता राशि देने की नीति को सकारात्मक कदम बताया गया।
केंद्रीय टीम ने यह भी कहा कि राज्य में गर्भवती महिलाओं का पूरा डेटा जिला प्रशासन के पास उपलब्ध है और आपदा के दौरान उनके स्वास्थ्य व सुरक्षित प्रसव की व्यवस्था सुनिश्चित करने के लिए प्रशासन की सक्रियता सराहनीय है। टीम ने इसे एक आदर्श मॉडल बताया और कहा कि इस पहल को अन्य राज्यों में भी लागू किया जाना चाहिए।