इन दिनों ईडी खुब चर्चे में हैं। इसका नाम आते ही भ्रष्टाचार के अर्जित की गई सम्पत्तियों का ब्यौरा और ढेर सारे नोट एक साथ दिखाई देने लगते हैं। इसके साथा ही ईडी का केवल नाम सुनते ही लोगों के पसिने छुट जाते हैं। तो आइए हम जानते हैं कि आखिर क्या है ईडी.. जिससे भ्रष्ट नेता और अधिकारी पुलिस से ज्यादा इनसे डरते हैं।
आपको बताते हैं कि हैं ईडी कैसे काम करती है, और इसके जांच करने का तरीका क्या है और इसके पास क्या क्या शक्तियां है। ED भारत की कानून प्रवर्तन खुफिया एजेंसी है, जो देश में आर्थिक कानूनों को लागू करने और इससे संबंधित अपराधों को पकड़ने के लिए बनाई गई है। 26 मई 1956 को सरकार के आर्थिक मामलों के विभाग ने विदेशी मुद्रा विनियमन अधिनियम (FERA) के तहत कानूनों के उल्लंघन से निपटने के लिए ‘प्रवर्तन इकाई’ का गठन किया था। ईडी आज देश में हो रहे धन शोधन निवारण, भगोड़ा आर्थिक अपराधी अधिनियम, विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम और फेरा के तहत आर्थिक अपराधों की जांच करने वाली एक बहुआयामी एजेंसी है।
पुलिस से ज्यादा ईडी से लगता है डर !
अपराध और भ्रष्टाचार के जरिए जो संपत्ति और पैसा अर्जित किया जाता है, उसे सुरक्षित रखने का सबसे अच्छा तरीका है उसे कहीं दूसरी जगह भेज दिया जाए. ऐसा करने से अपराधी की किसी के प्रति जवाबदेही नहीं होती. देश में इन्हीं अपराधों और भ्रष्टाचार पर रोक लगाने की सख्त जरूरत थी। 2002 में प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट के जरिए ईडी को लाया गया, लेकिन इस अधिनियम को 2005 में लागू किया गया. इसका उद्देश्य था कि भारत के बाहर या यूं कहें कि स्विस बैंकों में जो पैसे भेजे जा रहे हैं उसको रोकना और इसके साथ ही पैसे को जहां भेजा जा रहा है उसके निशान को पता करना था।
ED को धारा 48 और 49 के तहत जांच करने की शक्तियां मिली
इसलिए प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट के मुताबिक, ईडी को धारा 48 और 49 के तहत जांच करने की शक्तियां मिली. ईडी अधिनियम के अनुसार अगर भारत से विदेशों में मनी लॉन्ड्रिंग की गई है तो संबंधित जगह को जानकारी के लिए अनुरोध पत्र भेजने का अधिकार है। वहीं अनुरोध करने के बाद विदेश की सरकार ईडी द्वारा पूछे गए दस्तावेजों और साक्ष्यों को भारत के साथ साझा कर सकती है। वहीं प्रवर्तन महानिदेशालय के पास जब कोई मनी लॉन्ड्रिंग का मामला आता है या उसे किसी भ्रष्टाचार का पता चलता है तो पहले वो संबंधित ठिकानों पर रेड मारने से लेकर आरोपी के खिलाफ पर्याप्त सबूत जुटाती है. यह प्रक्रिया होने के बाद प्रवर्तन महानिदेशालय आपराधी को पूछताछ के लिए समन भेजती है।
जांच करने वाला अधिकारी ईडी को पूरा विवरण भेजता है
बता दें कि स्थानीय पुलिस स्टेशन में धन से संबंधित कोई केस दर्ज किया जाता है, जो एक करोड़ से ज्यादा है तो इसकी जांच करने वाला अधिकारी ईडी को पूरा विवरण भेजता है। इसके अलावा, अगर अपराध सीधा केंद्रीय एजेंसी के संज्ञान में आता है, तो वे एफआईआर या फिर चार्जशीट के लिए अपराधी को बुला सकती है। इसके बाद पता लगाया जाता है कि कहीं कोई लांड्रिंग तो नहीं हुई है। अगर किसी नेशनल बैंक में चोरी हुई हुई है, तो स्थानीय पुलिस स्टेशन पहले जांच करेगा।
वहीं अगर चोरी करने वाले ने चुराया गया सारा पैसा बिना खर्च किए अपने घर में रख लिया तो ऐसे में ईडी कोई हस्तक्षेप नहीं करती, क्योंकि पैसे को पहले ही जब्त किया जा चुका होता है। लेकिन, चोरी किए गए पैसे को चार साल बाद प्रॉपर्टी खरीदने, किसी दूसरे को पैसा ट्रांसफर करना या फिर पैसे को विदेशों में भेज देने पर मनी लॉन्ड्रिंग का केस बनता है। इसके बाद ईडी की केस में एंट्री होती है। ईडी चोरी किए गए पैसे की वसूली प्रॉपर्टी अटैच करके करती है। इसको ऐसे भी समझ सकते हैं, मान लीजिए अगर एक करोड़ रुपए के गहने चोरी हो जाते हैं तो पुलिस अधिकारी चोरी की जांच करेंगे। लेकिन ईडी एक करोड़ के पैसे की वसूली के लिए आरोपियों की संपत्ति कुर्क कर देती है।