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हल्द्वानी….कला और स्थापत्य कला क्यों महत्वपूर्ण? दी ये अहम जानकारी

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हल्द्वानी। एमबीपीजी डिग्री कॉलेज के इतिहास विभाग की ओर से इतिहास विभाग के छात्र-छात्राओ के उन्नयन विकास एवं सृजनात्मक ज्ञानवृद्धि के लिए इतिहास विषयक वैदिक संस्कृति पर व्याख्यान का आयोजन महाविद्यालय के सभागार में किया गया।

व्याख्यानशाला का शुभारंभ प्राचार्य एनएस बनकोटी और विषय विशेषज्ञ प्रो. विश्व मोहन पाण्डेय ने मां सरस्वती के चित्र के समक्ष दीप प्रज्जवलित कर किया। प्राचार्य प्रो. एनएस बनकोटी ने कहा कि वैदिक संस्कृति पर आयोजित व्याख्यान शाला इतिहास के छात्र-छात्राओं के लिए मील का पत्थर साबित होगी। इसके माध्यम से विद्यार्थियों को संस्कृति के अध्ययन व पुरातन परंपरा को जीवंत रखने का सुनहरा अवसर मिलेगा।

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वहीं विषय विशेषज्ञ प्रो. विश्व मोहन पाण्डे ने वैदिक काल से जुड़ी समस्त लेख प्रमाण, संस्कृति और सभ्यता में उत्तर के साथ इतिहास का विज्ञान के साथ संबंध विषय के बारे में विस्तार से जानकारी देते हुए कहा कि कला, स्थापत्य कला क्यों महत्वपूर्ण है। 1500-1100 बीसी से लेकर 1100-500 बीसी में समाज कैसे परिवर्तित होता रहा।

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समाज की नैतिकता, मूल्य व संस्कृति में प्रचार-प्रसार किया गया। प्रो. विश्व मोहन पाण्डे ने वैदिक संस्कृति के साथ-साथ विज्ञान, अर्थशास्त्र व प्राकृतिक दर्शन पर भी विस्तार से प्रकाश डाला। ग्रंथों, वेदों, ब्राह्मण ग्रंथ, अरण्यक व उपनिषदों से कैसे समाज का निर्णय हुआ, इसके बारे में भी उन्होंने जानकारी दी।

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वैदिक संस्कृति व्याख्यान में विभागाध्यक्ष डा. सुरेश चंद्र टम्टा, प्रो. सरोज वर्मा, डा. राजेश कुमार, प्रो. नीता पाण्डे, प्रो. प्रभा पंत, डा. एचएस भाकुनी, महिपाल सिंह कुटियाल, दिनेश कुमार टम्टा, डा. नवल किशोर लोहनी के अलावा इतिहास विषय के 200 से अधिक छात्र-छात्राएं व रिसर्च स्कॉलर व कर्मचारी उपस्थित रहे। इतिहास विभाग द्वारा आयोजन मंडल की समन्वयक डा. विमला देवी ने धन्यवाद ज्ञापित कर उनके व्याख्यान के प्रति आभार जताया।

हिल दर्पण डेस्क

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