उत्तराखंड में पंचायत चुनावों को लेकर सियासी पारा एक बार फिर चढ़ गया है। इस बार विवाद का कारण बना है मानसून के दौरान चुनाव कराने का निर्णय। नेता प्रतिपक्ष यशपाल आर्य ने इसे जनता की जान से खिलवाड़ बताते हुए राज्य सरकार पर तीखा हमला बोला है। उन्होंने कहा कि सरकार ने सात महीने तक पंचायत चुनावों को टालने के बाद अब उन्हें मानसून के चरम समय में कराने का जो निर्णय लिया है, वह पूरी तरह गैर-जिम्मेदाराना और जनविरोधी है।
आर्य ने कहा कि इस समय उत्तराखंड में लगातार भारी बारिश हो रही है, नदियां और नाले उफान पर हैं। पहाड़ी क्षेत्रों में भूस्खलन और बादल फटने की घटनाएं हो रही हैं जिससे आम जनजीवन बुरी तरह प्रभावित है। कई गांव जिला मुख्यालयों से कट गए हैं, सड़कें अवरुद्ध हैं और पुल तक बह गए हैं। इन हालातों में पंचायत चुनाव कराना एक अपरिपक्व निर्णय है।
नेता प्रतिपक्ष ने सवाल उठाया कि पंचायतों का कार्यकाल पिछले वर्ष सितंबर के अंत में समाप्त हो गया था। उसके बाद सितंबर से जून तक सात महीने ऐसे थे जब चुनाव शांतिपूर्ण और सुरक्षित ढंग से कराए जा सकते थे। लेकिन सरकार ने समय रहते चुनाव न कराकर अब उन्हें बरसात के सबसे खतरनाक समय में कराने का फैसला किया है, जिससे साफ जाहिर होता है कि सरकार की मंशा चुनाव टालने की थी, न कि उसे समय पर कराने की।
आर्य ने कहा कि कांग्रेस पार्टी अक्टूबर 2023 से ही चुनाव समय पर कराने की मांग करती आ रही है, लेकिन सरकार ने पंचायतों में प्रशासकों की नियुक्ति कर चुनाव प्रक्रिया को लगातार टालने की कोशिश की। जब सरकार ने मई महीने में अध्यादेश लाकर प्रशासकों का कार्यकाल एक साल बढ़ाने की कोशिश की तो उसे राजभवन द्वारा असंवैधानिक करार देकर रोक दिया गया। इसी मजबूरी में अब सरकार को चुनाव की घोषणा करनी पड़ी है।
आर्य ने चेतावनी दी कि मानसून के समय चुनाव करवाना जनता की सुरक्षा के साथ समझौता है। उन्होंने कहा कि चुनाव प्रक्रिया के दौरान हजारों प्रत्याशी, उनके समर्थक और चुनाव कर्मियों को लगातार यात्रा करनी होती है। जब अधिकांश सड़कें टूटी होंगी, पुल बह चुके होंगे और भूस्खलन का खतरा हर जगह होगा, तब प्रत्याशी, जिनमें 50% महिलाएं शामिल हैं, कैसे नामांकन करने आएंगी और प्रचार करेंगी? उन्होंने सवाल किया कि क्या सरकार ऐसे समय में सभी प्रत्याशियों और कर्मचारियों की सुरक्षा की गारंटी लेगी?