उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने सरकारी कर्मचारियों के लिए राहत देते हुए उनके वेतन से वर्षों पुराने कथित अतिरिक्त भुगतान की वसूली (रिकवरी) के आदेश को रद्द कर दिया है। यह फैसला न्यायमूर्ति मनोज कुमार तिवारी की एकल पीठ ने राम उजागर बनाम उत्तराखंड राज्य और अन्य संबंधित याचिकाओं पर 26 नवंबर 2025 को सुनाया। इस फैसले से राज्य के विभिन्न विभागों के कर्मचारियों को राहत मिली है, जिनके वेतन से पहले किए गए अतिरिक्त भुगतान की वसूली की जा रही थी।
मामला कर्मचारियों के वेतन निर्धारण और वित्तीय लाभों से संबंधित था। लेखा परीक्षा दल की आपत्ति के बाद सक्षम प्राधिकारी ने माना कि कर्मचारियों को वेतन निर्धारण में हुई त्रुटि के कारण अतिरिक्त वेतन/इंक्रीमेंट का लाभ मिला है और वसूली का आदेश जारी किया। यह आदेश मुख्यतः 27 मई 2019 के सरकारी शासनादेश पर आधारित था।
याचिकाकर्ता राम उजागर और अन्य कर्मचारियों ने उच्च न्यायालय में इस आदेश को चुनौती दी। उनके अधिवक्ताओं ने तर्क दिया कि यह भुगतान सक्षम अधिकारियों द्वारा नियमों के अनुसार दिया गया था और लंबे समय बाद एकतरफा वसूली आदेश देना प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के खिलाफ है। उन्होंने यह भी कहा कि यह वसूली कर्मचारियों के लिए अत्यधिक कठोर और मनमाना है।
सुनवाई के दौरान न्यायालय ने पाया कि एक समन्वय पीठ पहले ही समान मामले पर फैसला सुना चुकी है और उस फैसले में लेखा परीक्षा रिपोर्ट तथा 27 मई 2019 के सरकारी आदेश को रद्द किया गया था। न्यायमूर्ति तिवारी ने न्यायिक औचित्य का हवाला देते हुए कहा कि इसी निर्णय के अनुसार इस याचिका को निपटाया जाना चाहिए।
सरकारी अधिवक्ता ने वसूली आदेश को सही ठहराते हुए तर्क दिया कि सक्षम प्राधिकारी को लेखा परीक्षा टीम की आपत्ति के बाद अधिक भुगतान की वसूली का आदेश देने का अधिकार है। उन्होंने यह भी बताया कि कर्मचारी संशोधित वेतनमान का विकल्प चुनते समय अंडरटेकिंग (वचनबंध) दे चुके थे।
सभी पक्षों की दलीलें सुनने के बाद उच्च न्यायालय ने कर्मचारियों की याचिकाओं को स्वीकार कर वसूली के आदेश को रद्द कर दिया। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि यह आदेश सक्षम प्राधिकारी को भविष्य में वेतन को नियमों और नीतियों के अनुसार पुनः निर्धारित करने से नहीं रोकता। इसका मतलब है कि पिछली वसूली तत्काल रद्द हो गई है, लेकिन भविष्य में वेतन निर्धारण पर पुनर्विचार किया जा सकता है।


