उत्तराखंड में शासन स्तर पर तबादलों को लेकर बड़ा विवाद खड़ा हो गया है। शासन ने 11 दिन के अंदर सिविल सर्विस बोर्ड (CSB) के फैसले को पलट दिया है, जिससे विभागीय तबादला सिस्टम पर सवाल उठने लगे हैं। इस बार जारी तबादला सूची के साथ ही विवाद शुरू हो गया था और अंततः सरकार को पीछे हटना पड़ा।
भारतीय वन सेवा (IFS) के अधिकारी वन संरक्षक विनय कुमार भार्गव को प्रमुख वन संरक्षक हॉफ के कार्यालय में अटैच कर दिया गया है। आदेश में 11 दिन पहले जारी स्थानांतरण आदेश संख्या 1457 को अस्थायी रूप से स्थगित करने का जिक्र है। इस आदेश में विनय भार्गव को निदेशक नंदा देवी बायोस्फीयर रिजर्व की जिम्मेदारी दी गई थी।
1 अगस्त को वन सेवा अधिकारियों के तबादले के लिए CSB की बैठक हुई थी, लेकिन आदेश करीब 21 दिन बाद जारी हुआ। आदेश आते ही विवाद शुरू हो गया क्योंकि विनय भार्गव ने अपने तबादले के खिलाफ कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। इसके बाद आईएफएस पंकज कुमार ने भी तबादले को कोर्ट में चुनौती दी।
हाईकोर्ट ने विनय भार्गव को राहत नहीं दी, लेकिन पंकज कुमार के तबादले पर शासन को पुनर्विचार करने को कहा। हालांकि पुनर्विचार का आदेश लिखित रूप में नहीं आया था कि शासन ने विनय भार्गव के तबादले को स्थगित कर उन्हें मुख्यालय अटैच कर दिया।
वन मंत्रालय में तबादले को लेकर शासन का यह बैकफुट लेना चर्चा में है क्योंकि स्थगन आदेश में पिछले आदेश को रोकने का कारण नहीं बताया गया है। विभागीय मंत्री सुबोध उनियाल से इस मामले पर कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली और अधिकारी भी इस पर चुप हैं।
IFS पंकज कुमार के पुनर्विचार के बाद शासन असमंजस में दिखा क्योंकि पंकज कुमार निदेशक नंदा देवी बायोस्फीयर रिजर्व थे, जहां विनय भार्गव का तबादला हुआ था। इसलिए विनय भार्गव को वहां से हटाना शासन का एकमात्र विकल्प माना जा रहा है। हाईकोर्ट में 2 साल से कम समय में अफसरों के तबादले को लेकर पंकज कुमार के अधिवक्ता ने भी तर्क दिए थे, जिनका सिस्टम कोई जवाब नहीं दे पाया।
इस बार के तबादलों में सबसे बड़ा मुद्दा यह है कि कई अधिकारियों को 2 साल से भी कम समय में बिना प्रशासनिक कारणों के स्थानांतरित किया गया। यह बात हाईकोर्ट में भी रखी गई। सूची में ऐसे कई नाम हैं जिन्हें कम समय में बार-बार तबादला किया गया है, जिससे विभागीय प्रणाली की पारदर्शिता और स्थिरता पर सवाल उठ रहे हैं।