उत्तराखंड में हाल ही में संपन्न हुए नगर निकाय चुनावों के बाद विभिन्न नगर निगमों और पालिकाओं में जनप्रतिनिधियों और प्रशासनिक अधिकारियों के बीच टकराव की खबरें सामने आने लगी हैं। विकास कार्यों में धीमी गति, बोर्ड बैठकों के स्थगन और संवादहीनता जैसी समस्याएं इन टकरावों की मुख्य वजह मानी जा रही हैं।
ताजा मामला श्रीनगर गढ़वाल नगर निगम का है, जहां राज्य की एकमात्र निर्दलीय मेयर आरती भंडारी और नगर आयुक्त नुपुर वर्मा के बीच तनातनी देखने को मिली। बोर्ड बैठक के दौरान नगर आयुक्त की अनुपस्थिति पर मेयर ने कड़ी नाराजगी जताई और यहां तक कह दिया कि यदि उनकी उपस्थिति विकास में बाधा बन रही है, तो वे इस्तीफा देने को भी तैयार हैं।
आरती भंडारी ने कहा “नगर निगम में पारदर्शिता और समन्वय की भारी कमी है, अधिकारी जनप्रतिनिधियों को नजरअंदाज कर रहे हैं। यह रवैया न केवल लोकतांत्रिक मूल्यों के खिलाफ है, बल्कि विकास को भी बाधित करता।
राज्य के अन्य निकायों से भी ऐसी ही शिकायतें मिल रही हैं, जहां निर्वाचित प्रतिनिधि अधिकारियों के सहयोग की कमी की बात कह रहे हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि यह स्थिति राज्य की नगरीय शासन प्रणाली के लिए चिंता का विषय है।
विपक्षी दलों ने भी इस मुद्दे को उठाते हुए कहा है कि सरकार को इस मामले में हस्तक्षेप कर जनप्रतिनिधियों और अधिकारियों के बीच बेहतर तालमेल सुनिश्चित करना चाहिए।
राज्य सरकार की ओर से इस संबंध में अभी तक कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है। हालांकि शहरी विकास विभाग द्वारा जल्द ही संबंधित अधिकारियों से रिपोर्ट मांगे जाने की संभावना है।