उत्तराखंड वन विभाग में एक बार फिर से गंभीर वित्तीय अनियमितताओं का मामला सामने आया है। इस बार निशाने पर हैं भारतीय वन सेवा (IFS) के वरिष्ठ अधिकारी और वर्तमान में कंजरवेटर ऑफ फॉरेस्ट पद पर तैनात विनय कुमार भार्गव। शासन ने उन्हें कारण बताओ नोटिस जारी कर 15 दिन में जवाब देने के निर्देश दिए हैं। यदि जवाब संतोषजनक नहीं पाया गया तो उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाएगी।
यह मामला वर्ष 2011 से 2021 के बीच का है, जब भार्गव पिथौरागढ़ में डिविजनल फॉरेस्ट ऑफिसर (DFO) के पद पर थे। जांच में पाया गया कि उन्होंने नियमों को दरकिनार करते हुए बिना टेंडर और पूर्व स्वीकृति के कई निर्माण कार्य कराए। इनमें डोरमेट्री, वन उत्पाद विक्रय केंद्र, 10 इको हट्स और एक ग्रोथ सेंटर का निर्माण शामिल है।
जांच रिपोर्ट के अनुसार, निर्माण कार्यों के लिए एक निजी संस्था को सीधे ठेका दिया गया और उसे एकमुश्त भुगतान भी कर दिया गया। इतना ही नहीं, मुनस्यारी क्षेत्र के पर्यटन से प्राप्त धन का 70% हिस्सा एक विकास समिति को देने के लिए भी बिना अनुमोदन के अनुबंध किया गया।
सबसे चौंकाने वाला मामला फायर लाइन से जुड़ा है। विभागीय वर्किंग प्लान में 14.6 किलोमीटर की फायर लाइन सफाई निर्धारित थी, लेकिन 2020-21 में 90 किलोमीटर क्षेत्र में कार्य कर ₹2 लाख खर्च कर दिए गए, जो नियमों का उल्लंघन माना गया है।
इस पूरे मामले का खुलासा IFS अधिकारी संजीव चतुर्वेदी की जांच में हुआ। उन्होंने दिसंबर 2024 में इस संबंध में शासन को विस्तृत रिपोर्ट भेजी थी। बीते सात महीनों से वह इस विषय पर लगातार शासन से पत्राचार कर रहे थे।
अब शासन इस पूरे मामले की गहराई से जांच कर रहा है। यदि विनय भार्गव संतोषजनक जवाब नहीं देते हैं, तो उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई तय मानी जा रही है। इससे वन विभाग में एक बार फिर पारदर्शिता और जवाबदेही को लेकर सवाल उठने लगे हैं।