उत्तराखंड में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव को लेकर स्थिति फिलहाल स्पष्ट नहीं है। पंचायतों का कार्यकाल समाप्त हुए कई माह हो चुके हैं, लेकिन सरकार अब तक चुनाव की अधिसूचना जारी नहीं कर सकी है। इसकी दो मुख्य वजहें हैं – पंचायतीराज अधिनियम में संशोधन और ओबीसी आरक्षण का निर्धारण।
राज्य सरकार ने अधिनियम संशोधन के लिए अध्यादेश का मसौदा तैयार कर राजभवन को भेज दिया है, लेकिन वहां से अब तक मंजूरी नहीं मिल पाई है। दूसरी ओर, ओबीसी आरक्षण की सूची भी तय नहीं हो सकी है, जो चुनाव प्रक्रिया का अहम हिस्सा है।
वर्तमान में पंचायतों का कामकाज प्रशासकों के जरिए चल रहा है, जिनमें पूर्व ग्राम प्रधान, प्रमुख और अध्यक्ष शामिल हैं। पंचायतीराज अधिनियम के अनुसार प्रशासकों का कार्यकाल छह महीने तक सीमित होता है, जो मई के अंत तक पूरा हो रहा है। ऐसे में सरकार के पास निर्णय लेने के लिए बहुत कम समय बचा है।
राज्य निर्वाचन आयोग ने स्पष्ट किया है कि चुनाव कराने की सभी तैयारियां पूरी हैं और मतदाता सूचियों का पुनरीक्षण भी पूरा किया जा चुका है। अब सिर्फ सरकार की अधिसूचना का इंतजार है।
अगर सरकार मई के अंत तक फैसला नहीं ले पाती, तो पंचायती व्यवस्था की संवैधानिक वैधता पर सवाल खड़े हो सकते हैं। ऐसे में आने वाले कुछ दिन राज्य की पंचायत राजनीति के लिए निर्णायक साबित होंगे।