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बड़े भूकंप की आशंका…उत्तराखंड में जमा हो रही है भूगर्भीय ऊर्जा, बढ़ रहा खतरा

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हिमालयी क्षेत्र, विशेषकर उत्तराखंड में एक बड़े भूकंप की आशंका को लेकर देश के प्रमुख भूवैज्ञानिकों ने चेतावनी जारी की है। उनके अनुसार, टेक्टोनिक प्लेटों के आपसी घर्षण के चलते इस क्षेत्र में बड़ी मात्रा में ऊर्जा जमा हो रही है, जो भविष्य में विनाशकारी भूकंप का कारण बन सकती है।

हाल ही में देहरादून में आयोजित दो प्रमुख वैज्ञानिक सम्मेलनों—वाडिया इंस्टीट्यूट में *”अंडरस्टैंडिंग हिमालयन अर्थक्वेक्स”* और एफआरआई (फॉरेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट) में *”अर्थक्वेक रिस्क असेसमेंट”*—में देश भर के भूगर्भ वैज्ञानिकों ने इस विषय पर विस्तार से चर्चा की।

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वैज्ञानिकों ने बताया कि वर्तमान में उत्तराखंड और इसके आसपास के इलाकों में आ रहे छोटे-छोटे भूकंप संकेत दे रहे हैं कि धरती के भीतर ऊर्जा लगातार एकत्र हो रही है। यह ऊर्जा यदि एक बार में बाहर निकलती है, तो इसकी तीव्रता रिक्टर स्केल पर लगभग 7.0 हो सकती है।

विशेषज्ञों के अनुसार, 4.0 तीव्रता वाले भूकंप में जितनी ऊर्जा निकलती है, उससे 32 गुना अधिक ऊर्जा 5.0 तीव्रता के भूकंप में निकलती है। इस आधार पर अनुमान लगाया जा रहा है कि आगामी बड़ा भूकंप बेहद शक्तिशाली हो सकता है।

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शोध में यह भी पाया गया है कि किसी क्षेत्र में बड़े भूकंप से पहले महीनों या वर्षों तक छोटे और धीमे भूकंपों की संख्या में बढ़ोतरी होती है। हालांकि, वर्तमान में आ रहे झटकों की संख्या इतनी नहीं है कि यह माना जा सके कि संचित ऊर्जा पूरी तरह से निकल चुकी है।

भूकंप के पूर्वानुमान के संबंध में वैज्ञानिकों का कहना है कि तीन चीजें महत्वपूर्ण होती हैं—भूकंप *कब* आएगा, *कहां* आएगा और *कितना तीव्र* होगा। इनमें से केवल यह अनुमान लगाया जा सकता है कि भूकंप किन क्षेत्रों में संभावित है, लेकिन समय और तीव्रता की सटीक जानकारी फिलहाल संभव नहीं है।

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इस दिशा में प्रयास के तहत उत्तराखंड में दो जीपीएस (ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम) स्थापित किए गए हैं, जिनके माध्यम से पता लगाया जा रहा है कि किस क्षेत्र में सबसे अधिक भूगर्भीय तनाव और ऊर्जा जमा हो रही है। हालांकि विशेषज्ञों का मानना है कि अधिक सटीक डेटा के लिए जीपीएस स्टेशनों की संख्या बढ़ाना आवश्यक है।

हिल दर्पण डेस्क

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