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भड़क उठा सीमांत…..सीमा सील बंदी को होंगे मजबूर, जानें वजह

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  • मुनस्यारी के जिपंस मर्तोलिया ने दी जनता की धमकी

चीन सीमा से लगे मुनस्यारी क्षेत्र की समस्याओं को लेकर 620 किलोमीटर दूर देहरादून पहुंचकर बुधवार को प्रमुख वन संरक्षक जयंत मोहन से मुलाकात की गई।

प्रतिनिधि मंडल ने मुनस्यारी के खालिया टॉप तथा बलाती फॉर्म को बचाने के लिए दूरगामी ट्रीटमेंट प्लान बनाने के साथ-साथ बलाती फार्म से भारतीय सेना को शिफ्ट करने की मांग भी उठाई।

उन्होंने कहा कि अपने हिमालय को बचाने के लिए अभी हम बातचीत कर रहे है कल जनता के सहयोग से लोकतांत्रिक ढंग से “सीमा सील बंद” जैसा आंदोलन भी करेंगे। कहा कि हम अपने हिमालय से बहुत प्यार करते है।उसको बचाने के लिए कुछ भी कर सकते है?

प्रतिनिधिमंडल ने उत्तराखंड के पूर्व वन संरक्षक डॉक्टर भगत सिंह बरफाल द्वारा किए गए अध्ययन तथा संस्तुतियों पर आधारित किताब भी प्रमुख वन संरक्षक को भेंट की।

चीन सीमा से लगे पिथौरागढ़ जनपद के मुनस्यारी  के जिला पंचायत सदस्य जगत मर्तोलिया के नेतृत्व में देहरादून पहुंचे शिष्टमंडल मंडल ने मुख्य वन संरक्षक डाक्टर धन्नजय मोहन से मुलाकात कर उन्हें मुख्य सचिव राधा रतूड़ी के पत्र की याद दिलाई।

उन्होंने बताया कि लोकसभा चुनाव में 50 ग्राम पंचायतों ने जिन मुद्दों पर चुनाव बहिष्कार की घोषणा की थी। जिलाधिकारी रीना जोशी ने जिला निर्वाचन अधिकारी की हैसियत से इन मामलों को मुख्य सचिव को भेज दिया था।

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मुख्य सचिव द्वारा अग्रेत्तर कार्रवाई के लिए प्रमुख वन संरक्षक को यह पत्रावली भेजी भेजी गई थी।

आगे की कार्रवाई समय बंद हो इसके लिए आज सिस्टम मंडल ने प्रमुख वन संरक्षक से विस्तार से बातचीत की। जिला पंचायत सदस्य जगत मर्तोलिया ने बताया कि विकासखंड मुनस्यारी के 50 ग्राम पंचायतों के पीने का पानी का भंडार खालिया टॉप तथा बलाती फॉर्म है। इस क्षेत्र में मानव हस्तक्षेप बढ़ने के कारण पेयजल स्रोतों में पानी कम हो रहा है।

1999 से स्थानीय जनप्रतिनिधियों के विरोध के बाद भी बलाती फॉर्म में भारतीय सेना लगातार अपना विस्तार कर रही है। भारतीय सेना को इस संवेदनशील क्षेत्र से शिफ्ट किए जाने की मांग की जा रही है। शिफ्टिंग के लिए भूमि चयन के लिए स्थानीय जनता तथा जनप्रतिनिधि भारतीय सेना को सहयोग करने के लिए तत्पर है।

उन्होंने बताया कि खलिया टॉप तथा बलाती फॉर्म का क्षेत्र इस हिमालय क्षेत्र के लिए भेद महत्वपूर्ण है।

50 वर्षों में इस क्षेत्र में हुए प्राकृतिक जल स्रोत तथा जैव विविधता को हुए नुकसान के मूल्यांकन के लिए पंडित गोविंद बल्लभ पंत पर्यावरण संस्थान अल्मोड़ा ,वाडिया इंस्टीट्यूट देहरादून, वन अनुसंधान संस्थान (एफ.आर. आई.) देहरादून सहित इस क्षेत्र में कार्य तथा राज्य का अनुभव रखने वाली एक गैर सरकारी संगठन के वैज्ञानिकों की टीम बनाकर एक समय सीमा के भीतर क्षेत्र में हुए नुकसान का आंकलन किया जाना आवश्यक है।

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उन्होंने कहा कि वन विभाग की अनुमति के बगैर खालिया टॉप के निकट कुमाऊं मंडल विकास निगम ने बंबू हट की जगह हिमालय को खुर्द बुर्द कर गेस्ट हाउस बना दिया है। इस पर 2011 से निगम के ऊपर कार्यवाही लंबित है, जिस पर से छाये काले बादल हटाने की मांग की है।

उन्होंने बताया कि बलाती फॉर्म तथा खलिया टॉप क्षेत्र में मानव हस्तक्षेप के बढ़ने के कारण 8 स्थानों पर भारी

भू-स्खलन, 16 पर आंशिक तथा अनगिनत स्थानों पर पहाड टूट रहा है। उन्होंने कहा कि भू-स्खलन के  घटनाक्रम इस तरह से बढ़ता रहा तो मुनस्यारी टाउन सहित 50 ग्राम पंचायतों के लिए भविष्य में गंभीर खतरे का संकेत है।

उन्होंने इसकी उच्च स्तरीय भूगर्भीय मूल्यांकन करने की आवश्यकता पर जोर दिया।

उन्होंने कहा कि इस क्षेत्र से निकलने वाले पानी के जलस्रोत प्रदूषित हो गए है। इसका भी मूल्यांकन किया जाना आवश्यक है।

शिष्टमंडल द्वारा उत्तराखंड के पूर्व प्रमुख  संरक्षक डॉक्टर भगत सिंह बरफाल द्वारा इस क्षेत्र के भूगर्भीय जल स्रोतों को संरक्षित किए जाने के लिए किए गए अध्ययन तथा संस्तुतियों पर आधारित किताब वर्तमान प्रमुख वन संरक्षक को भेंट किया गया।

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आशा जताई गयी है कि डॉक्टर बरफाल के संस्तुतियों  के आधार पर ट्रीटमेंट के लिए वन विभाग को इस समयबद्ध प्लान बनायेगा।

उन्होंने कहा कि इस क्षेत्र के एक वन पंचायत सरमोली जैती में भारी वित्तीय अनियमितताएं की गई है।

वन पंचायत क्षेत्र को नुकसान पहुंचाया गया है। डेढ़ वर्ष से इसकी जांच को लंबित रखा गया है। उन्होंने जनप्रतिनिधियों द्वारा उठाए गए जांच के बिन्दुओं पर ठोस तथा अंतरिम कार्रवाई की मांग की।

जिपंस मर्तोलिया ने कहा कि हम सरकार के सभी तंत्रों से बातचीत कर रहे है। कहा कि हम अपने हिमालय से बहुत प्यार करते है,उसके लिए कुछ भी कर सकते है। यह भी कहा कि हिमालय नहीं है तो फिर प्राणियों का क्या होगा।

अगर हमारी बात नहीं सुनी गई तो चीन सीमा क्षेत्र पर इन मांगों को लेकर “सीमा सील बंद” जैसे आंदोलन भी होंगे।

जिसकी पूर्ण जिम्मेदारी उत्तराखंड तथा भारत सरकार की होगी।

प्रमुख वन संरक्षक डॉक्टर जयंत मोहन ने कहा कि शिष्टमंडल द्वारा उठाए गए संवेदनशील एवं गंभीर मुद्दों पर वन विभाग गंभीरता से विचार करते हुए कार्रवाई करेगी।

हिल दर्पण डेस्क

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