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……अब भ्रष्टाचार और मानवाधिकार के मामलों की सूचना देने से इन्कार नहीं कर पाएगा सतर्कता अधिष्ठान

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आरटीआई एक्टिविस्ट रमेश पाण्डे ने भ्रष्टाचार सम्बन्धी कई बिन्दुओं पर मांगी थी सूचना –

हल्द्वानी। भ्रष्टाचार के आंकड़ों पर राज्य सूचना आयोग में दायर की गई द्वितीय अपील का 22 फरवरी 2024 को निस्तारण हो गया है। राज्य सूचना आयुक्त विपिन चद्र के हस्ताक्षर से जारी आदेश में सूचना को नियमानुसार देय तो बताया है लेकिन सूचना उपलब्ध कराने हेतु समय सीमा निर्धारित नहीं की है।

यहां देवकी विहार मिवासी रमेश चंद्र पाण्डे ने बताया कि विजिलेंस के लोक सूचना अधिकारी और अपीलीय अधिकारी द्वारा गलत तर्क देते हुए जिस सूचना को दिया जाना असम्भव बताया था उसके विरुद्ध की गई अपील में दिये गये तर्क से सहमत होते हुए राज्य सूचना आयुक्त द्वारा अपने आदेश में उस सूचना को नियमानुसार देय बताया है , जो स्वागतयोग्य है लेकिन यह हैरानी की बात है कि आयोग द्वारा जिस सूचना को देय माना है उसे उपलब्ध कराने के लिए समयबद्धता तय नहीं होना आरटीआई एक्ट की मूल भावना के विपरीत है क्योंकि एक्ट में सूचना उपलब्ध कराए जाने के लिए हर स्तर पर समयावधि निर्धारित है।

हल्द्वानी के देवकीबिहार निवासी रमेश चन्द्र पाण्डे ने 29 जून 2023 को लोक सूचना अधिकार अधिनियम 2005 के तहत निदेशालय सतर्कता अधिष्ठान के लोक सूचना अधिकारी से 6 बिन्दुओं पर सूचना मांगी गई थी। प्रत्युत्तर में लोक सूचना अधिकारी/पुलिस उपाधीक्षक सुरेन्द्र सिंह ने बताया कि उत्तराखण्ड शासन की ओर से 10 सितम्बर 2020 को जारी अधिसूचना में सतर्कता विभाग एवं सतर्कता अधिष्ठान को आसूचना संगठन ( इन्टैलीजैन्स आर्गनाइजेशन) घोषित किए जाने के फलस्वरूप आरटीआई एक्ट की धारा 24 की उप धारा 4 के अन्तर्गत सूचना के प्रगटन से छूट प्राप्त होने के कारण सूचना दी जानी सम्भव नहीं है। श्री पाण्डे ने उक्त प्रत्युत्तर से असहमत होकर प्रथम अपीलीय अधिकारी को अपील भेजी।

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लोक सूचना अधिकार अधिनियम की धारा 24 की उपधारा (4) के ‘परन्तुक’ की ओर अपीलीय अधिकारी का ध्यान आकृष्ट करते हुए श्री पाण्डे ने कहा है कि ‘परन्तुक’ में भ्रष्टाचार और मानवाधिकार के अतिक्रमण के मामलों में सूचना के प्रगटन में छूट नहीं है। अपीलीय अधिकारी/ संयुक्त निदेशक (विधि) सदावृक्ष द्वारा इस अपील का निस्तारण करते हुए 10 अक्टूबर 2023 को जारी अपने आदेश में कहा कि वे लोक सूचना अधिकारी के मत से सहमत हैं। इसके अतिरिक्त उनके द्वारा यह भी कहा गया कि उत्तराखण्ड शासन द्वारा 10 अक्टूबर 2020 को निर्गत अधिसूचना में निहित प्रविधानों तथा इससे सम्बन्धित उच्च न्यायालय उत्तराखण्ड में योजित रिट पिटीशन संख्या 276/2020 में 24 फरवरी 20 को पारित स्थगनादेश तथा उच्चतम न्यायालय में योजित एसएलपी 30283/2021 में 4 फरवरी 20222 को पारित स्थगनादेश के प्रभावी होने के कारण सूचना दी जानी सम्भव नहीं है।

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इन बिन्दुओं पर मांगी थी सूचनाः
राज्य गठन से लेकर अब तक भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 के तह सामने आए ट्रैप के प्रकरणों में धारा 19 (1) के तहत अभियोजन की अनुमति प्राप्त प्रकरणों की संख्या तथा जिनमें अभियोजन की अनुमति प्राप्त नहीं की गई अथवा सरकार द्वारा अनुमति नहीं दी गई की संख्या।
ट्रैप के कुल प्रकरणों में से ऐसे प्रकरणों की संख्या जिनमें सरकार द्वारा केस वापस करने का निर्णय लिया हो।
अब तक ट्रैप के ऐसे प्रकरणों की संख्या जो न्यायालय में 5 वर्ष या उससे अधिक समय से विचाराधीन हों ।
ऐसे मामलों की संख्या जिनमें न्यायालय द्वारा आरोपी को दोषी मानकर सजा दी हो
राज्य में विभागवार ट्रैप के प्रकरणों की संख्या।
सतर्कता विभाग द्वारा ट्रैप के लिए जो टीम गठित की गई है उन्हें जनपद एवं राज्य मुख्यालय स्तर से दी गई नगद पुरस्कार की धनराशि

सूचना आयोग का निर्णयः
राज्य सूचना आयोग ने अपने आदेश यह तो माना है कि मांगी गई सूचना आरटीआई एक्ट की मूल भावना एवं धारा 24(4)के परन्तुक से पूर्णतः आच्छादित और देय हैं लेकिन लोक सूचना अधिकारी को निर्देशित किया गया कि उच्चतम न्यायालय मे लम्बित एस.एल.पी.( सतर्कता अधिष्ठान सूचना अधिकार अधिनियम 2005 के अन्तर्गत आने सम्बन्धी ) के दृष्टिगत अंतिम निर्णय आने उपरान्त तदनुसार अनुरोध पत्र के सापेक्ष मांगी गई सूचना बिन्दुवार अपीलार्थी को उपलब्ध कराना सुनिश्चित करें ।

अब अपीलार्थी ने क्या दी प्रतिक्रियाः
अपीलकर्ता रमेश चन्द्र पाण्डे ने कहा कि लोक सूचना अधिकारी ने जिस कारण से सूचना नहीं दिए जाने को असंभव बताया है, उसके खिलाफ की गई अपील में दिए गए तर्क से सहमत होते हुए आयोग ने भी सूचना को देय बताया है लेकिन आयोग ने उच्चतम न्यायालय में लम्बित जिस एस.एल.पी का हवाला दिया है, उसे उन्होंने गलत बताया है।
प्रथम अपीलीय अधिकारी के कथन की वास्तविकता और प्रासंगिकता को जांचे परखे बिना आयोग के आदेश में इसका उल्लेख् कर दिया गया है जो अप्रासंगिक और गलत है। कहा कि आदेश में उच्चतम न्यायालय के जिस स्थगनादेश का उल्लेख किया गया है वह 14 मई 2019 के आदेश को लेकर है जिसका शासन द्वारा 10 अक्टूबर 2020 को जारी अधिसूचना से कोई लेना देना नहीं है ।

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हिल दर्पण डेस्क

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