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विज्ञानी दे रहे हैंचेतावनी… उत्तराखंड में छुपा है अगला विनाशकारी भूकंप!

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उत्तराखंड और मध्य हिमालय क्षेत्र में भूकंप की घटनाओं में निरंतर बढ़ोतरी वैज्ञानिकों के लिए चिंता का विषय बन गई है। भूगर्भ में अत्यधिक ऊर्जा जमा होने के कारण कुमाऊं और गढ़वाल के कई इलाकों को भूकंप के लिहाज से अत्यंत संवेदनशील माना जा रहा है। नैनीताल सहित अन्य प्रमुख क्षेत्रों में भी भूकंपीय ऊर्जा के संचय से भविष्य में भूकंप की संभावना बढ़ गई है।

वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक और निदेशक विनीत गहलोत ने बताया कि पिछले 300-400 वर्षों में उत्तराखंड में कोई बड़ा भूकंप नहीं आया है, जिससे भूगर्भ में ऊर्जा संचित हो रही है। हिमालय क्षेत्र में चल रहे निरंतर अध्ययनों से पता चला है कि जमीन के अंदर भारी मात्रा में ऊर्जा एकत्रित हो रही है, जो किसी बड़े भूकंप का संकेत हो सकता है।

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विशेषज्ञों के अनुसार, आने वाले भूकंप का प्रभाव लगभग 300 किलोमीटर के दायरे में महसूस किया जा सकता है, हालांकि यह बताना मुश्किल है कि सबसे अधिक नुकसान किस क्षेत्र को होगा। नैनीताल, देहरादून और कोटाबाग जैसे मैदानी क्षेत्र भी भूकंप के प्रति संवेदनशील हैं। इसी कारण राज्य आपदा प्रबंधन विभाग ने इन संवेदनशील इलाकों की निगरानी तेज कर दी है।

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उत्तराखंड में अब तक 20 से अधिक स्थानों पर भूकंप मापी यंत्र लगाए जा चुके हैं, जिनसे जमीन की हलचलों पर नजर रखी जा रही है। इसके साथ ही 15 और जगहों पर सेंसर लगाने की योजना है ताकि समय रहते भूकंप की चेतावनी दी जा सके। नैनीताल, देहरादून, टिहरी, रुद्रप्रयाग, बागेश्वर, पिथौरागढ़, चमोली, उत्तरकाशी जैसे जिले इस लिहाज से सबसे अधिक जोखिम में हैं।

पद्मश्री पुरस्कार प्राप्त वैज्ञानिक हर्ष गुप्ता ने कहा कि आने वाले समय में भूकंप के साथ जीवन यापन करना जरूरी होगा। उन्होंने भूकंप प्रतिरोधी समाज (Earthquake Resilient Society) बनाने पर जोर दिया ताकि भूकंप जैसी प्राकृतिक आपदा में जान-माल के नुकसान को कम किया जा सके। उन्होंने मुजफ्फराबाद (2005) और हैती (2010) में आए विनाशकारी भूकंपों का उदाहरण देते हुए कहा कि उचित जागरूकता और तैयारी से जनहानि को काफी हद तक रोका जा सकता है।वहीं, उन्होंने भारत में भूकंप दिवस मनाने की भी सलाह दी, ताकि लोगों को भूकंप के दौरान सुरक्षा उपायों के प्रति जागरूक किया जा सके और ऐसी प्राकृतिक आपदाओं के प्रभाव को न्यूनतम किया जा सके।

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हिल दर्पण डेस्क

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