उत्तराखंड सरकार द्वारा सचिवालय कर्मचारियों के लिए लागू की गई संशोधित स्थानांतरण नीति 2025 को दो महीने होने को हैं, लेकिन अब तक इसके तहत सचिवालय में किसी भी अधिकारी या कर्मचारी का स्थानांतरण नहीं हो सका है। इससे शासन-प्रशासन की पारदर्शिता और नीतिगत प्रतिबद्धता पर सवाल खड़े हो रहे हैं।
14 जुलाई को मुख्य सचिव आनंद वर्धन के हस्ताक्षर से यह नई ट्रांसफर पॉलिसी जारी की गई थी। नीति के अनुसार, सचिवालय में 3 वर्ष और 5 वर्ष से अधिक समय से एक ही पद या विभाग में कार्यरत कर्मचारियों को स्थानांतरित किया जाना था। लेकिन 31 जुलाई को तबादला सत्र समाप्त होने के बावजूद अब तक किसी बड़े पैमाने पर तबादलों की कार्रवाई नहीं की गई है।
नए मुख्य सचिव आनंद वर्धन से अपेक्षा की जा रही थी कि वे अपने पहले कार्यकाल की तरह इस बार भी सचिवालय में प्रभावी बदलाव करेंगे। लेकिन अब तक की निष्क्रियता से कर्मचारियों में असंतोष और निराशा का माहौल बन रहा है।
उत्तराखंड सचिवालय संघ भी इस मामले को लेकर सक्रिय हुआ है। संघ के पूर्व अध्यक्ष दीपक जोशी ने तबादला नीति के तहत पारदर्शी कार्रवाई की मांग की है और आरोप लगाया है कि कुछ तबादले नई नीति के मानकों के खिलाफ गुपचुप तरीके से किए गए हैं।
प्रारंभ में माना गया कि गैरसैंण में आयोजित विधानसभा सत्र के चलते ट्रांसफर प्रक्रिया में देरी हुई। लेकिन सत्र समाप्त हुए भी लंबा समय हो गया है, इसके बावजूद सचिवालय प्रशासन की ओर से कोई स्पष्ट कार्रवाई सामने नहीं आई है।
इस विषय में सचिवालय प्रशासन के सचिव दीपेंद्र चौधरी से संपर्क करने की कोशिश की गई, लेकिन उनसे कोई प्रतिक्रिया प्राप्त नहीं हो सकी। जैसे ही उनका पक्ष सामने आता है, उसे भी रिपोर्ट में शामिल किया जाएगा।