विवाह से एक साल पहले नहीं हो सकेगा विच्छेद
देहरादून। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने देश का पहला कॉमन सिविल कोड बिल मंगलवार को विधानसभा के पटल पर पेश कर दिया। इस बिल के लागू होने के बाद उत्तराखंड में विवाह के सभी कानून, प्रथाएं और रूढ़ियां निष्प्रभावी हो जाएंगी। विवाह, लिव इन रिलेशनशिप और विवाह विच्छेद का पंजीकरण अनिवार्य हो जाएगा। कोई भी एक पति या पत्नी के रहते दूसरा विवाह नहीं कर पाएगा। लिव इन रिलेशनशिप से पैदा बच्चा वैध माना जाएगा। संपत्ति में बेटियों को बराबर का हक मिलेगा। उत्तराधिकार के नियम पर कड़े कर दिए गए हैं।
हाथ में संविधान का प्रति लेकर लेकर विधानसभा पहुंचे सीएम पुष्कर सिंह धामी ने कॉमन सिविल कोड का बिल सदन के पटल पर पेश कर दिया। 202 पेज के इस बिल में विवाह, विवाह विच्छेद, उत्तराधिकार, गोद लेने का अधिकार, लिव इन रिलेशनशिप, विवाह पंजीकरण पर विस्तार से नियम बनाए गए हैं। जानकारों का कहना है कि इस बिल के लागू होने के बाद उत्तराखंड में विवाह के अन्य सभी कानून, रूढ़ियां या प्रथाएं स्वतः ही निष्प्रभावी हो जाएंगी। यह कानून राज्य से बाहर रहने वाले उत्तराखंड के सभी नागरिकों पर भी लागू होगा। अलबत्ता अनूसूचित जनजाति के लोगों और समूहों पर यह कानून लागू नहीं होगा।
नए कानून में सभी विवाहों पर पंजीकरण अनिवार्य़ कर दिया गया है। लिव इन रिलेशनशिप के लिए भी पंजीकरण जरूरी कर दिया गया है। विवाह के लिए पुरुष की उम्र 21 और महिला के लिए न्यूनतम 18 वर्ष कर दी गई है। पंजीकरण के लिए सचिव स्तर का अधिकार महानिबंधक और एसडीएम स्तर का अधिकारी निबंधक होगा। उप निबंधक भी नियुक्त किए जाएगा। ये अधिकारी किसी सूचना या शिकायत पर भी विवाह या लिव इन रिलेशन के पंजीकरण के लिए नोटिस जारी कर सकेंगे। नोटिस के एक माह बाद तक पंजीकरण के लिए आवेदन न करने पर 25 हजार का जुर्माना लगाया जाएगा।
आपसी सहमति से भी विवाह विच्छेद हो सकेगा। लेकिन शर्त यह होगी कि विवाह को एक साल से अधिक का वक्त हो चुका हो। इसका उल्लंघन करने पर 50 हजार का जुर्माना और छह माह की सजा हो सकती है। हलाला जैसी रूढ़ि के मामलों में तीन वर्ष की सजा और एक लाख का जुर्माना लगाया जा सकता है। इसे संज्ञेय अपराध में शामिल कर दिया गया है।
लिव इन रिलेशन का पंजीकरण भी अनिवार्य कर दिया गया है। तय किया गया है कि अगर कोई पुरुष या महिला पहले से विवाहित है या किसी अन्य के साथ इस तरह के लिव इन रिलेशन में है तो उनका पंजीकरण नहीं किया जाएगा। इस रिलेशन के बारे में अभिभावकों को भी सूचित किया जाएगा। इस रिलेशनशिप से पैदा होने वाले बच्चे को वैध माना जाएगा और उसे उत्तराधिकारी माना जाएगा। लिव इन रिलेशन को दोनों की सहमति से समय से पहले भी समाप्त किया जा सकता है। यह संबंध खत्म होने पर महिला को भरण पोषण का अधिकार होगा। एक माह तक पंजीकरण न कराने पर तीन माह की सजा और 10 हजार का जुर्माना होगा। गलत तथ्यों के साथ पंजीकरण कराने पर तीन माह की सजा और 25 का जुर्माना होगा।
विवाह विच्छेद का मामला विचाराधीन होने पर महिला को भरण पोषण का अधिकार होगा। विच्छेद के बाद हैसियत के अनुसार भरण पोषण की राशि तय की जाएगा। इस भरण पोषण में मेहर और स्त्रीधन को शामिल नहीं किया जाएगा।
इस कानून में प्रतिबंधिक नातेदारी की सूची भी शामिल गई है। इसमें महिला और पुरुष की 37-37 श्रेणियों को शामिल किया गया है। यानि कि इनके बीच आपस में विवाह नहीं हो सकेगा। महिला के दोबारा विवाह करने में कोई शर्त नहीं है। बहु विवाह पर रोक लगाई गई है। यानि पति या पत्नी के जीवित रहते दूसरी शादी नहीं हो सकती है।
जानकारों का कहना है कि इस कानून से कुछ चीजों पर कोई फर्क नहीं होगा। मसलन विवाह की धार्मिक मान्यताओं और धार्मिक रीति-रिवाज पर असर नहीं होगा। खान-पान, पूजा-इबादत, वेश-भूषा पर प्रभाव नहीं होगा।।