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उत्तराखंड की पंचायतें नेतृत्वविहीन…संवैधानिक अड़चनों में उलझी सरकार

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उत्तराखंड की ग्राम, क्षेत्र व जिला पंचायतें फिलहाल खाली रहेंगी, क्योंकि इनमें नियुक्त प्रशासकों का कार्यकाल समाप्त हो चुका है और अभी तक नए प्रशासकों की पुनर्नियुक्ति नहीं हो सकी है। पंचायती राज अधिनियम में आवश्यक संशोधन के लिए राज्य सरकार ने जो अध्यादेश राजभवन को भेजा था, वह हरिद्वार जिले से जुड़ी एक पूर्व की संवैधानिक पेचिदगियों के चलते अटक गया है।

राज्य में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव अब तक नहीं हो सके हैं। पंचायती राज अधिनियम के तहत, यदि समय पर पंचायत चुनाव नहीं होते हैं, तो अधिकतम छह महीने के लिए प्रशासक नियुक्त किए जा सकते हैं। इसी प्रावधान के तहत राज्य सरकार ने, हरिद्वार को छोड़कर, अन्य सभी पंचायतों में छह माह के लिए प्रशासकों की नियुक्ति की थी। यह कार्यकाल अब समाप्त हो चुका है।

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सरकार अब पंचायतों में दोबारा प्रशासकों की नियुक्ति करना चाहती है, जिसके लिए अधिनियम में संशोधन आवश्यक है। इसके लिए लाया गया अध्यादेश राजभवन को भेजा गया था, लेकिन विधायी विभाग ने इसे हरिद्वार से जुड़े पूर्व अध्यादेश का हवाला देते हुए वापस कर दिया। संविधान पीठ के फैसले का उल्लेख करते हुए विभाग ने कहा कि कोई भी अध्यादेश यदि एक बार खारिज हो चुका हो, तो उसे पुनः उसी रूप में लाना संविधान के साथ धोखा होगा।

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हरिद्वार जिले में 2021 में पंचायतों का कार्यकाल समाप्त होने के बाद चुनाव नहीं हो सके थे। तब छह महीने के लिए प्रशासक नियुक्त किए गए थे। कार्यकाल खत्म होने के बाद भी चुनाव नहीं होने पर सरकार ने अधिनियम में संशोधन के लिए अध्यादेश लाया था, लेकिन बाद में हरिद्वार में पंचायत चुनाव करा दिए गए। ऐसे में वह अध्यादेश विधानसभा से पारित नहीं कराया गया। यदि वह पास हो जाता तो स्थायी कानून बन सकता था।

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अब सरकार ने पूर्व अध्यादेश में आंशिक संशोधन कर पुनः राजभवन को नया प्रस्ताव भेजा है। यदि इसे मंजूरी मिलती है तो पंचायतों में प्रशासकों की पुनर्नियुक्ति संभव हो सकेगी। अन्यथा पंचायत प्रणाली के संचालन में बाधा उत्पन्न हो सकती है।

 

हिल दर्पण डेस्क

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