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शीतकाल की राह पर मद्महेश्वर!… जयघोषों के बीच बंद हुए द्वितीय केदार के कपाट

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उत्तराखंड के द्वितीय केदार भगवान मद्महेश्वर के कपाट मंगलवार प्रातः 8 बजे शीतकाल के लिए विधि-विधानपूर्वक बंद कर दिए गए। मार्गशीर्ष कृष्ण चतुर्दशी और स्वाति नक्षत्र के शुभ संयोग में कपाट बंद किए जाने की प्रक्रिया पूरी हुई। सोमवार को ही पूरे मंदिर परिसर को फूलों से भव्य रूप से सजाया गया था। इस पावन अवसर पर 350 से अधिक श्रद्धालु, बदरीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति (बीकेटीसी) के अधिकारी-कर्मचारी, वन विभाग एवं प्रशासन के प्रतिनिधि मौजूद रहे।

ब्रह्म मुहूर्त में मंदिर खुलने के बाद श्रद्धालुओं ने दर्शन और पूजा-अर्चना कर पुण्य लाभ अर्जित किया। सुबह सात बजे कपाट बंद करने की प्रक्रिया आरंभ हुई। बीकेटीसी के मुख्य कार्याधिकारी/कार्यपालक मजिस्ट्रेट विजय प्रसाद थपलियाल, बीकेटीसी सदस्य प्रह्लाद पुष्पवान और पंच गौंडारी हकहकूकधारियों की उपस्थिति में पुजारी शिवलिंग ने स्वयंभू शिवलिंग को समाधि रूप दिया। इसके बाद ठीक आठ बजे जयघोष के साथ कपाट शीतकाल के लिए बंद कर दिए गए। कपाट बंद होने के बाद मद्महेश्वर की चल विग्रह डोली ने मंदिर की परिक्रमा कर अपना पहला पड़ाव गौंडार की ओर प्रस्थान किया।

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बीकेटीसी अध्यक्ष हेमंत द्विवेदी ने कपाट बंद होने के अवसर पर श्रद्धालुओं को शुभकामनाएं देते हुए शीतकालीन गद्दीस्थलों पर दर्शन करने का आग्रह किया। बीकेटीसी उपाध्यक्ष ऋषि प्रसाद सती और विजय कप्रवाण ने भी श्रद्धालुओं को बधाई दी।

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मुख्य कार्याधिकारी विजय प्रसाद थपलियाल ने बताया कि कठिन भौगोलिक परिस्थितियों के बावजूद इस यात्रा वर्ष 22,000 से अधिक श्रद्धालुओं ने द्वितीय केदार मद्महेश्वर में दर्शन किए। मीडिया प्रभारी डॉ. हरीश गौड़ के अनुसार, डोली 19 नवंबर को रांसी स्थित राकेश्वरी मंदिर और 20 नवंबर को गिरिया में प्रवास करेगी। 21 नवंबर को मद्महेश्वर की चल विग्रह डोली शीतकालीन गद्दीस्थल ओंकारेश्वर मंदिर, ऊखीमठ पहुंचेगी, जहां उसके स्वागत की तैयारियां जोर-शोर से चल रही हैं।

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डोली के ऊखीमठ पहुंचने के उपलक्ष्य में ऐतिहासिक तीन दिवसीय मद्महेश्वर मेला 20 से 22 नवंबर तक आयोजित होगा। यह मेला हर साल बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं और भक्तों को अपनी ओर आकर्षित करता है।

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हिल दर्पण डेस्क

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