उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने 10 साल पुराने काठगोदाम नन्ही परी हत्याकांड में आरोपी को सुप्रीम कोर्ट द्वारा बरी किए जाने के बाद अधिवक्ता को सोशल मीडिया पर धमकी दिए जाने के मामले में सुनवाई की। कोर्ट ने कई प्रमुख सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स को नोटिस जारी कर अपना पक्ष रखने को कहा और एसएसपी, एसटीएफ देहरादून को भी पक्षकार बनाया।
कोर्ट ने सोशल मीडिया साइटों से पूछा कि यदि कोई भड़काऊ पोस्ट या धमकी भरे बयान प्लेटफॉर्म पर साझा करता है तो उसे हटाने के लिए क्या तकनीकी इंतजाम हैं, और क्या कोई ऐसी तकनीक मौजूद है जो स्वतः ऐसे पोस्ट को हटा सके। कोर्ट ने संबंधित अधिकारियों से इस पर रिपोर्ट पेश करने का आदेश दिया।
गौरतलब है कि हाईकोर्ट पहले ही महिला अधिवक्ता और उनके परिवार को सुरक्षा प्रदान करने के आदेश दे चुका है। सुनवाई मुख्य न्यायाधीश जी. नरेंद्र और न्यायमूर्ति सुभाष उपाध्याय की खंडपीठ में हुई। कोर्ट ने आईजी साइबर क्राइम को निर्देश दिया कि वे सोशल मीडिया से भड़काऊ पोस्ट हटवाएं और अगर कोई ऐसा करने से मना करे तो कानूनी कार्रवाई करें।
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि अधिवक्ता सिर्फ अपनी ड्यूटी निभा रही हैं, और किसी को अपनी प्रतिक्रिया देनी हो तो वह जांच अधिकारी के सामने प्रस्तुत करे। साथ ही कोर्ट ने अधिवक्ता के खिलाफ सोशल मीडिया पर अभियान चलाने वालों के खिलाफ भी कार्रवाई का निर्देश दिया।
उल्लेखनीय है कि 20 नवंबर 2014 को काठगोदाम से पिथौरागढ़ जा रही छह वर्षीय मासूम बच्ची अचानक लापता हो गई थी। छह दिन बाद उसका शव गौला नदी में मिला था। नाबालिग के साथ हुए दुष्कर्म और हत्या मामले में आरोपी अख्तर को पहले फांसी की सजा सुनाई गई थी, जिसे बाद में सुप्रीम कोर्ट ने रद्द कर दिया था। आरोपी की बरी होने के बाद कई जगह प्रदर्शन हुए और सोशल मीडिया पर अधिवक्ता को धमकियां दी गईं।
 
         
                                


