उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने नाबालिग लड़के-लड़कियों के प्यार और डेटिंग के दौरान पकड़े जाने पर लड़के को पॉक्सो एक्ट के तहत गिरफ्तार किए जाने के खिलाफ दायर जनहित याचिका की सुनवाई की। मामले की सुनवाई मुख्य न्यायाधीश जी नरेंद्र और न्यायमूर्ति सुभाष उपाध्याय की खंडपीठ में हुई। सुनवाई के दौरान अधिवक्ता के अनुरोध पर अगली सुनवाई के लिए आगामी सप्ताह की तारीख तय की गई।
अधिवक्ता मनीषा भंडारी ने याचिका दायर करते हुए कहा कि नाबालिग लड़के-लड़कियों के प्रेम संबंधों में अक्सर लड़के को दोषी मानकर पॉक्सो एक्ट के तहत गिरफ्तार कर जेल भेज दिया जाता है। जबकि कई बार लड़की बड़ी होती है, फिर भी लड़के को ही कस्टडी में लिया जाता है। ऐसे मामलों में लड़कों की गिरफ्तारी की बजाय काउंसलिंग होनी चाहिए, क्योंकि वे अकेले दोषी नहीं होते।
उन्होंने बताया कि नाबालिग लड़कों को स्कूल-कॉलेज की उम्र में जेल भेजा जाना अनुचित है। ऐसे मामलों में जुवेनाइल जस्टिस एक्ट के तहत लड़कों, लड़कियों और उनके परिजनों की काउंसलिंग आवश्यक है। भारतीय दंड संहिता के तहत 16 से 18 वर्ष के नाबालिग अपराधियों की मानसिक स्थिति का आकलन करने के लिए बोर्ड का गठन किया जाता है, जबकि पॉक्सो एक्ट के कुछ प्रावधानों के कारण उन्हें सीधे जेल भेज दिया जाता है, जो एक चिंताजनक स्थिति है।
कोर्ट को सुनवाई के दौरान यह भी बताया गया कि हल्द्वानी जेल में ऐसे आरोपों से संबंधित लगभग 20 नाबालिग बंद हैं। पूर्व में उच्च न्यायालय ने केंद्र और राज्य सरकार से इस मामले पर जवाब मांगा था। हालांकि, आज की सुनवाई कुछ कारणों से पूरी नहीं हो सकी, जिस कारण कोर्ट ने अगली सुनवाई की तिथि निर्धारित कर दी है।