उत्तराखण्ड सरकार द्वारा लोकसभा चुनाव की मतगणना के ठीक चार दिन पहले 31 मई को तीन विभागाध्यक्षों को 6 माह के लिए सेवाविस्तार दिये जाने के आदेश को लेकर विधिक सवाल उठ खड़े हुए हैं। इनमें से लोक निर्माण विभाग के प्रमुख अभियन्ता दीपक कुमार यादव को दोबारा सेवाविस्तार दिये जाने से जहां एक ओर इस पद पर पदोन्नति की बाट जोह रहे अभियन्ता की पदोन्नति की आस पर तुषारापात हुआ है वहीं दूसरी ओर सरकार की मंशा पर भी तीखे सवाल उठ रहे हैं ।
शासन द्वारा शुक्रवार को अलग अलग तीन आदेशों के जरिये प्रमुख अभियन्ता लोक निर्माण विभाग दीपक कुमार यादव के अलावा प्रमुख अभियन्ता सिंचाई विभाग जयपाल सिंह एवं निदेशक प्रविधिक शिक्षा राजेन्द्र प्रसाद गुप्ता को 6 माह का सेवाविस्तार दिया गया है ।
व्यवस्था के प्रति जवाबदेही के सवाल को लेकर मुखर आरटीआई कार्यकर्ता रिटायर्ड असिस्टेंट आडिट आफिसर रमेश चन्द्र पाण्डे ने इन तीनों आदेशों पर आश्चर्यमिश्रित कड़ी प्रतिक्रया व्यक्त की है ।
श्री पाण्डे के अनुसार प्रमुख अभियन्ता लोक निर्माण के पद पर दीपक कुमार यादव को 30 नवम्बर 2023 को जब पहली बार 6 माह के लिए सेवाविस्तार दिया गया था तो आदेश में कहा गया था कि इस पद पर पदोन्नति हेतु पोषक संवर्ग अर्थात मुख्य अभियन्ता स्तर -1 के पद पर 30 जून 2023 से कार्यरत अभियन्ता 6 माह की परिवीक्षा अवधि में हैं । कहा कि मुख्य अभियन्ता स्तर -1 के तीन अभियन्ताओं की परिवीक्षा अवधि दिसम्बर में पूर्ण हो जाने के बाद भी उन्हें पदोन्नति से वंचित कर श्री यादव को दोबारा सेवाविस्तार दिये जाने से हर कोई हतप्रभ है ।
श्री पाण्डे के अनुसार 15 जून 2002 को कार्मिक विभाग द्वारा कार्मिको की अधिवर्षता आयु 58 वर्ष के स्थान पर 60 वर्ष करने की अधिसूचना जारी की थी जिसके बाद वित्त विभाग द्वारा 11 जुलाई 2002 को अधिसूचना जारी कर वित्तीय हस्तपुस्तिका के खण्ड 2 भाग-2 से 4 के मूल नियम 56 (क) में संशोधन किया गया । पूर्व नियम में 58 वर्ष पूर्ण होने के बाद विशेष परिस्थिति में अधिकतम 60 वर्ष तक सेवाविस्तार दिये जाने का प्रावधान था लेकिन अधिवर्षता की आयु 60 वर्ष होने के फलस्वरूप संशोधित नियम में यह प्रावधान समाप्त कर दिया गया ।
उन्होंने स्पष्ट तौर पर कहा कि 11 जुलाई 2002 को इस नियम में संशोधन हो जाने के बाद राज्याधीन सेवाओं में सेवाविस्तार देने के लिए सरकार की विवेकाधीन शक्ति समाप्त हो गई । इसके बाद कार्मिक और वित्त विभाग द्वारा ऐसी किसी विशेष परिस्थिति में सम्बन्धित कार्मिक की सेवा की जरुरत होने पर शासन की सहमति लेकर पुनर्नियुक्ति किये जाने के आदेश जारी किये हैं ।
उत्तराखण्ड राज्य प्राप्ति के आन्दोलन के दरम्यान मुजफ्फरनगर काण्ड में मौत से रुबरु हो चुके श्री पाण्डे ने कहा कि पदोन्नति के लिए पात्र कार्मिक के रहते सेवानिवृत्त कार्मिक को सेवाविस्तार दिया जाना सरासर गलत और नियमविरुद्व है ।
उन्होंने कहा कि मौजूदा समय मे इस पूरे मामले में हैरतअंगेज पहलु यह है कि इन तीनों आदेशों की प्रतिलिपि राज्य के मुख्य चुनाव आयुक्त को भी की गई है । ऐसे में दो सवाल उठते हैं । पहला यह कि सेवाविस्तार के आदेश जारी करने से पूर्व पत्रावली में चुनाव आयोग की सहमति ली गई होगी । अगर सहमति ली गई है तो सवाल उठता है कि जब सेवाविस्तार दिये जाने का नियम ही नहीं है तो आयोग ने सहमति कैसे दे दी ?
दूसरा यह कि यदि सहमति लिए बिना आदेश जारी हुआ है तो पृष्ठाकिंत आदेश को संज्ञान में लेते हुए चुनाव आयोग ने इस पर क्या एक्शन लिया है । उन्होंने इस नियमविरूध और दूसरे के हक पर डाका डालने वाले मामले में जवाबदेही सुनिश्चित करते हुए तानाशाहीपूर्ण कार्यवाही पर तत्काल अंकुश लगाने की जरुरत पर बल दिया है ।