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उत्तराखंड के इस चर्चित मामले में कानून तो बना पर सूचना न देने के नियम का नहीं चला पता!

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हल्द्वानी: साल 2023 के शुरुआती माह में पटवारी भर्ती हेतु आयोजित परीक्षा के प्रश्न लीक हो जाने से चर्चित जिस प्रकरण के चलते उत्तराखण्ड में देश का सबसे सख्त नकल विरोधी कानून बना उसी प्रकरण के बारे में मांगी गई सूचना हेतु की गई द्वितीय अपील के निस्तारण के आदेश हो जाने के बाद भी इस बात का खुलासा नहीं हुआ कि आखिर किस नियम के तहत अपीलार्थी को सूचना से वंचित किया गया ?

इस स्थिति से हैरान अपीलार्थी ने मुख्य सूचना आयुक्त से इस आदेश का पुनरावलोकन करने का अनुरोध करने के साथ ही सचिव सामान्य प्रशासन / नोडल विभाग ( आरटीआई) से इस आदेश पर न्याय विभाग से परामर्श लेने के उपरान्त आवश्यक दिशा-निर्देश जारी करने का अनुरोध किया है ताकि कोई भी अपीलार्थी हतोत्साहित न हो और उसे जिस नियम के तहत सूचना से वंचित किया गया हो उस नियम की जानकारी हो सके ।

गौरतलब है कि हल्द्वानी के देवकीबिहार निवासी रमेश चन्द्र पाण्डे ने 11 मार्च 2023 को उत्तराखण्ड लोक सेवा आयोग के लोक सूचना अधिकारी को आवेदन भेजकर 3 बिन्दुओं पर सूचना मांगी थी ।

(1) *पटवारी/ लेखपाल की भर्ती हेतु 12-2-23 को दोबारा आयोजित परीक्षा के लिए प्रश्न पत्र तैयार कराये जाने की पूरी प्रक्रिया से सम्बन्धित पत्राचार एवं पत्रावली में अंकित टिप्पणियों की सत्यप्रतिलिपि* ।

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(2) पटवारी की भर्ती हेतु 12-2-23 को आयोजित परीक्षा मे दिये गये प्रश्नपत्र की सत्यप्रतिलिपि ।

(3) *पटवारी/लेखपाल की भर्ती हेतु लीक हुए क्वैश्चन बैंक के प्रश्नो की सत्यप्रतिलिपि*।

लोक सूचना अधिकारी द्वारा 13 अप्रैल को बिन्दु संख्या 2 की सूचना दी गई लेकिन *बिन्दु संख्या 1 व 3 के बारे मे आरटीआई एक्ट की धारा 8(1) (छ) का हवाला देते हुए सूचित किया गया कि यह सूचना दी जानी सम्भव नहीं है* । प्रथम अपीलीय अधिकारी द्वारा भी लोकसूचना अधिकारी के अभिमत पर सहमति व्यक्त किये जाने के बाद श्री पाण्डे ने 3 जून को राज्य सूचना आयोग को द्वितीय अपील भेजी थी जिसकी सुनवाई पांच माह बाद 20 नवम्बर को हुई ।

मुख्य सूचना आयुक्त अनिल चन्द्र पुनेठा के स्तर से हुई सुनवाई के बाद 29 नवम्बर को आदेश निर्गत हुआ ।आदेश के बिन्दु 7 में उल्लिखित लोक सूचना अधिकारी एवं प्रथम अपीलीय अधिकारी की प्रतिनिधि के रूप में आयोग की समीक्षा अधिकारी के वक्तव्य के अनुसार बिन्दु संख्या 1 व 3 की सूचना इसलिए नहीं दी गयी क्योंकि वे गोपनीय प्रवृति की हैं और आरटीआई एक्ट की धारा 8(1)(g) एवं 8(1)(d) से आच्छादित हैं । आदेश के बिन्दु 8 में उनकी ओर से कहा गया है कि प्रश्न बैंक उत्तराखण्ड लोक सेवा आयोग के नियमों के हिसाब से नहीं दिया जा सकता है और यह बौद्धिक सम्पदा के तहत सूचना का अधिकार अधिनियम की धारा 8(1)(d) से आच्छादित होता है । उनके द्वारा यह भी स्पष्ट किया गया कि यदि अपीलार्थी लीक प्रश्नपत्र की प्रतिलिपि चाहते हैं और यदि अपीलार्थी अलग से आरटीआई एक्ट के लीक प्रश्नपत्र की प्रतिलिपि हेतु आवेदन करते हैं तो वह दे दी जायेगी ।आदेश के बिन्दु 9 में अपील का निस्तारण करते हुए कहा गया है कि उपर्युक्त वर्णित परिस्थिति में लोक सूचना अधिकार अधिनियम के अन्तर्गत आगे कोई कार्यवाही शेष नहीं है ।

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अपीलार्थी श्री पाण्डे का कहना है कि सूचना नहीं दिये जाने के सम्बन्ध में आदेश में लोक सूचना अधिकारी एवं उनके प्रतिनिधि द्वारा उल्लिखित नियम में भिन्न्ता है । आयोग को इस भिन्नता के बारे में आदेश में अपना मत देना चाहिए था । कहा कि इस स्थिति के चलते वह यह नहीं समझ पा रहे हैं कि आखिर उन्हें किस नियम के तहत सूचना के अधिकार से वंचित किया गया है* ? *आयोग द्वारा अपने आदेश में इस महत्वपूर्ण सवाल को नजरअन्दाज करना दुर्भाग्यपूर्ण है*।

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आदेश में उल्लिखित लोक सेवा आयोग की प्रतिनिधि के इस वक्तव्य पर भी सवाल उठाया गया है जिसमें कहा गया है कि “प्रश्न बैंक उत्तराखण्ड लोक सेवा आयोग के नियमों के हिसाब से नहीं दिया जा सकता है” । जानना चाहा है कि आरटीआई एक्ट के रहते आखिर लोक सेवा आयोग का वह कौन सा नियम है जिसके हिसाब से सूचना नहीं दी जा सकती है ।

अपीलार्थी का कहना है कि राज्य सूचना आयोग के गठन का मूल उद्देश्य “लोक” की पैरवी करते हुए उसे मांगी गई सही सूचना दिलाना है और यही समझकर उन्हें विश्वास था कि चार पन्नों की द्वितीय अपील में उनके द्वारा जन हित से जुड़ी सूचना दिलाने हेतु जो तर्क दिये गये हैं उनके बारे में लोक सूचना अधिकारी के प्रतिनिधि द्वारा सुनवाई के समय जो भी पक्ष रखा जायेगा उसकी नियमसंगत समीक्षा करते हुए आदेश जारी किये जांयेगे लेकिन ऐसा नहीं होने से वे हतप्रभ व हतोत्साहित होकर रह गये हैं ।

हिल दर्पण डेस्क

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