उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने बागेश्वर जिले के कांडा तहसील और आसपास के कई गांवों में अवैध खड़िया खनन से मकानों और जमीनों में आई दरारों को लेकर दायर स्वतः संज्ञान जनहित याचिका तथा 165 खनन इकाइयों से जुड़ी याचिकाओं पर संयुक्त सुनवाई की। सुनवाई के बाद मुख्य न्यायाधीश जस्टिस जी. नरेंद्र और न्यायमूर्ति आलोक कुमार महरा की खंडपीठ ने मामले की अगली तारीख सोमवार निर्धारित की।
कोर्ट ने जिला खनन अधिकारी को निर्देश दिए कि अदालत के आदेश के बाद भी जिन खनन कारोबारियों ने खनन जारी रखा, उनके खिलाफ दर्ज मामलों की एफआईआर की प्रति प्रस्तुत की जाए। इस दौरान जिला खनन अधिकारी स्वयं कोर्ट में पेश हुईं और बताया कि “नवीन कुमार माइंस” के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया गया है क्योंकि उसने कोर्ट के आदेशों का उल्लंघन करते हुए खनन कार्य किया। इस पर कोर्ट ने एफआईआर की प्रति सोमवार तक अनिवार्य रूप से प्रस्तुत करने को कहा।
मामले के अनुसार, कांडा तहसील के ग्रामीणों ने पहले मुख्य न्यायाधीश को पत्र भेजकर शिकायत की थी कि अवैध खड़िया खनन से उनकी खेती, घरों और पेयजल लाइनों को गंभीर नुकसान पहुंचा है। ग्रामीणों का कहना था कि आर्थिक रूप से सक्षम लोग प्रभावित क्षेत्र छोड़ चुके हैं, जबकि गरीब परिवार अब भी गांव में रहकर कठिनाइयों का सामना कर रहे हैं। उन्होंने कई बार उच्च अधिकारियों को शिकायत दी, लेकिन समाधान न मिलने पर न्यायालय की शरण ली।
इसी बीच, एक अन्य मामले में हाईकोर्ट ने हल्द्वानी वॉकवे मॉल के पास सड़क चौड़ीकरण न होने के मुद्दे पर हेमंत गोनिया की याचिका को जनहित याचिका के रूप में सुनवाई के लिए स्वीकार किया। मुख्य न्यायाधीश जस्टिस जी. नरेंद्र और न्यायमूर्ति सुभाष उपाध्याय की खंडपीठ ने जिलाधिकारी नैनीताल को निर्देश दिया कि वे अतिक्रमणकारियों और संबंधित पक्षों के साथ बैठक कर यह जांच करें कि किन-किन स्थानों पर अतिक्रमण हुआ है तथा नाले की स्थिति भी स्पष्ट करें। कोर्ट ने 29 दिसंबर तक विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत करने को कहा है।


