उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने गोमुख से उत्तरकाशी तक भागीरथी इको-सेंसिटिव ज़ोन में एनजीटी के निर्देशों के विपरीत अवैध होटल और रिज़ॉर्ट निर्माण की अनुमति दिए जाने के मामले की सुनवाई की। सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश जी नरेंद्र और न्यायमूर्ति सुभाष उपाध्याय की खंडपीठ ने राज्य सरकार और सिंचाई विभाग से मंगलवार तक पूरी रिपोर्ट कोर्ट में पेश करने का निर्देश दिया।
सुनवाई में डीएम उत्तरकाशी समेत कई अधिकारी व्यक्तिगत रूप से उपस्थित हुए, लेकिन कोर्ट उनके द्वारा पेश किए गए रिकॉर्ड से संतुष्ट नहीं हुई। याचिकाकर्ता की ओर से बताया गया कि राज्य सरकार ने बाढ़ क्षेत्र के लिए बने एक्ट का पालन अभी तक नहीं किया, जिससे हर साल उत्तराखंड में बाढ़ से संबंधित आपदाएँ हो रही हैं। कोर्ट ने अधिकारियों को निर्देश दिया कि वे अपने-अपने क्षेत्रों का समयबद्ध निरीक्षण करें, ताकि जनधन की हानि रोकी जा सके।
याचिकाकर्ता ने यह भी कहा कि प्रकृति प्रेमियों को लुभाने के लिए नदी किनारे और ग्लेशियर के पास कैंप, होटल व रिज़ॉर्ट निर्माण की अनुमति बिना वैज्ञानिक सर्वेक्षण के दी जा रही है। उन्होंने मांग की कि निर्माण कार्य की अनुमति केवल सर्वेक्षण के बाद दी जाए, ताकि बाढ़ जैसी आपदाओं में जनधन की हानि से बचा जा सके।
राज्य सरकार की ओर से कोर्ट को बताया गया कि दी गई अनुमति सर्वेक्षण के आधार पर ही दी गई थी। हालांकि, कोर्ट ने सरकार से पूर्ण और विस्तृत सर्वे रिपोर्ट पेश करने को फिर से कहा।
याचिका हिमालयन नागरिक दृष्टि मंच ने दायर की थी। याचिकाकर्ता ने कहा कि गंगोत्री से उत्तरकाशी तक नदी किनारे बिना मानकों के जमकर निर्माण हो रहा है, जिससे बार-बार आपदाएँ आती हैं। याचिका में इन क्षेत्रों में निर्माण और अवैध कार्यों पर रोक लगाने की भी मांग की गई है।


