उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने 23 अक्तूबर को रामनगर के बैलपड़ाव में प्रतिबंधित मांस के शक में पुलिस चौकी परिसर में लोडर वाहन पर हुई तोड़फोड़ के मामले में पुलिस की कार्यप्रणाली पर कड़ी नाराज़गी जताई है।
शुक्रवार को मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति जी. नरेंदर और न्यायमूर्ति सुभाष उपाध्याय की खंडपीठ ने वीडियो फुटेज देखने के बाद सवाल किया कि जब आरोपियों के चेहरे स्पष्ट दिख रहे हैं तो अब तक उन्हें गिरफ्तार क्यों नहीं किया गया। कोर्ट ने इस लापरवाही पर बैलपड़ाव चौकी प्रभारी और कालाढूंगी कोतवाली प्रभारी निरीक्षक के खिलाफ जांच के आदेश दिए हैं।
मामले में पहले एक वाहन चालक की पत्नी द्वारा सुरक्षा की गुहार लगाई गई थी, वहीं अब दूसरे वाहन के मालिक *अलशिफा ट्रेडिंग कंपनी* ने भी हाईकोर्ट से सुरक्षा की मांग की है। अदालत ने यह जांचने के निर्देश दिए कि इस घटना के पीछे किसी व्यावसायिक प्रतिद्वंद्विता की साजिश तो नहीं है। कोर्ट ने कहा कि मामला वैचारिक नहीं बल्कि व्यावसायिक प्रतिस्पर्धा का परिणाम प्रतीत होता है।
कोर्ट ने इस प्रकरण को उसी दिन हुई छोई गांव की मॉब लिंचिंग घटना से भी जोड़ते हुए लोडर चालक नासिर की पत्नी नूरजहां की याचिका पर पुलिस से विस्तृत प्रगति रिपोर्ट मांगी है।
खंडपीठ ने कालाढूंगी कोतवाली पुलिस को निर्देश दिया है कि यदि कोई ट्रांसपोर्टर वैध मांस ले जाने की सूचना 24 या 48 घंटे पहले देता है, तो पुलिस चालक और क्लीनर की सुरक्षा सुनिश्चित करे। साथ ही, अदालत ने उस मुखबिर का पता लगाने को भी कहा जिसने झूठी सूचना देकर भीड़ को उकसाया था।
हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि पुलिस की मौजूदगी में कानून व्यवस्था भंग होना गंभीर लापरवाही है और दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई जरूरी है।


