उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने बागेश्वर जिले के कांडा तहसील सहित अन्य क्षेत्रों में अवैध खड़िया खनन मामले की सुनवाई करते हुए खनन पर लगी रोक को कायम रखने का फैसला सुनाया है। न्यायमूर्ति आलोक महरा की खंडपीठ ने खनन प्रतिबंध नहीं हटाने का आदेश दिया है। इस मामले की अगली सुनवाई लगभग 6 हफ्ते बाद होगी।
यह मामला जनहित याचिका के रूप में न्यायालय में पहुंचा था, जिसमें कोर्ट ने स्वयं संज्ञान लिया था। कोर्ट ने अवैध खड़िया खनन से बने गड्ढों को भरने की अनुमति भी दी है। गड्ढों को भरते समय केंद्रीय भू-जल बोर्ड के अधिकारियों की उपस्थिति में गड्ढों की जीओ टैगिंग की जाएगी, ताकि भविष्य में यदि उन्हें खोला जाना पड़े तो उनकी सही स्थिति का पता चल सके। इस कार्य का खर्चा खनन स्वामियों से वसूल किया जाएगा।
साथ ही, कोर्ट ने खनन सामग्री की नीलामी के लिए पर्यावरणविद् शेखर पाठक की अध्यक्षता में एक समिति गठित करने और इसके लिए टेंडर प्रक्रिया शुरू करने का आदेश भी दिया है।
उच्च न्यायालय ने अल्मोड़ा जिले के मैग्नेसाइट खनन मामले पर भी सुनवाई की। इस दौरान खननकर्ताओं ने बताया कि उन्होंने नियमों के तहत खनन किया है और संबंधित रिपोर्ट भी उनके पक्ष में है। कोर्ट ने खनन और ब्लास्टिंग की अनुमति देने पर सहमति जताई, जबकि प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (पीसीबी) ने अपना लाइसेंस निरस्त होने की बात कोर्ट के सामने रखी। कोर्ट ने पीसीबी को इस संबंध में उचित प्रार्थना पत्र दाखिल करने का निर्देश दिया है।
खनन करने वालों ने कोर्ट को बताया कि उनके खनन पट्टों की लीज जल्द समाप्त होने वाली है और खनन पर लगी रोक के कारण वे गंभीर आर्थिक संकट में हैं। उन्होंने कहा कि बैंकों के कर्ज और नोटिस से वे दबाव में हैं, इसलिए उनसे अनुरोध किया कि रोक हटाई जाए और सॉफ्ट स्टोन शील्ड की गई सामग्री को भी रिलीज किया जाए।
कोर्ट ने फिलहाल खनन पर लगी रोक को बरकरार रखते हुए सभी पक्षों को उचित कार्रवाई के लिए समय दिया है। अगली सुनवाई में इस मामले में आगे का निर्णय लिया जाएगा।