गैंगरेप का झूठा मुकदमा दर्ज कराने वाली महिला को अदालत ने दो महीने की साधारण कैद की सजा सुनाई है। कोर्ट ने इस मामले में सख्त टिप्पणी करते हुए कहा है कि वास्तविक पीड़ितों को समय से न्याय नहीं मिल पाता और झूठे मुकदमे दर्ज कराने वालों की लाइन लगी है। इस निर्णय से अन्य को सबक मिलना चाहिए।
दिल्ली के रोहिणी कोर्ट के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश जगमोहन की अदालत ने इस मामले में बरी हुए आरोपियों के वकील प्रदीप राणा की दलीलों को अहम माना। अदालत ने अपने आदेश में कहा है कि हमारे देश में कोई भी व्यक्ति अपने जीवन से ज्यादा समाज में अपने सम्मान को जगह देता है। यदि एक बार सम्मान खो गया तो वापस नहीं आता। अदालत ने कहा कि यहां विडंबना यह भी रही कि एक आरोपी सतबीर की मामले की सुनवाई के दौरान ही मौत हो गई थी। ऐसे में उसके जीवनकाल में समाज में उसका सम्मान बहाल नहीं हो पाया, जबकि वह निर्दोष था।
अदालत में यह साबित हो गया है कि उसके खिलाफ झूठा शपथपत्र देकर मुकदमा दर्ज कराया गया था। अदालत ने कहा कि 8 साल तक एक ही परिवार के 4 लोगों ने बेकसूर होते हुए भी गैंगरेप जैसे अपराध का कलंक झेला। उन्हें जेल में डाल दिया गया। ऐसे में उन्हें मान-सम्मान, मानसिक आघात के साथ आर्थिक हानि भी झेलनी पड़ी। इन हालात में झूठा मुकदमा कराने वाली महिला के प्रति नरमी नहीं बरती जा सकती।
मैरिज सर्टिफिकेट और फोटोग्राफ से खुला मामला : बचाव पक्ष के वकील प्रदीप राणा ने शिकायतकर्ता महिला व मुख्य आरोपी की शादी के फोटोग्राफ व मैरिज सर्टिफिकेट अदालत के समक्ष पेश किया। इन फोटोग्राफ में महिला के परिवार के सदस्य भी शादी समारोह में शामिल पाए गए। इन दोनों ने दिल्ली के यमुना बाजार स्थित आर्य समाज मंदिर में यह शादी 4 दिसंबर 2012 को की थी। जबकि महिला ने अपनी शिकायत में आरोप लगाया था कि आरोपियों ने 29 नवंबर 2012 उसका अपहरण किया था। उसे 10 दिसंबर 2012 तक हरियाणा के करनाल में बंधक बनाकर रखा गया। जहां मुख्य आरोपी के साथ तीन अन्य आरोपियों ने उसके साथ गैंगरेप किया। वास्तविकता में वह खुद आरोपी के साथ शादी कर उस दौरान हरियाणा के करनाल स्थित अपने ससुराल में रहने के लिए गई थी। इस मामले में इनकी शादी कराने वाले आर्य समाज मंदिर के पंडित की गवाही भी महत्वपूर्ण रही।