उत्तराखंड में निकाय चुनावों के लगातार टलने से सियासत गरमा गई है। विपक्ष ने सरकार पर निकाय चुनावों को लेकर लापरवाही और असंवैधानिकता का आरोप लगाया है, वहीं सत्ता पक्ष ने पलटवार करते हुए विपक्ष के आरोपों को बेबुनियाद बताया है।
पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने राज्य सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि विधानसभा में पारित बिल को प्रवर समिति को भेजना संसदीय परंपराओं का उल्लंघन है। उन्होंने सरकार से आग्रह किया कि विधानसभा में नया बिल पेश किया जाए और राज्य में जल्द से जल्द निकाय चुनाव कराए जाएं। रावत ने आरोप लगाया कि सरकार चुनावों से डर रही है और हार का भय सता रहा है।
भाजपा ने विपक्षी आरोपों का जवाब देते हुए कहा कि सभी पार्टियों को निकाय चुनाव से जुड़ी संवैधानिक प्रक्रिया को समझना चाहिए और राजनैतिक बयानबाजी से बचना चाहिए। भाजपा प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र भट्ट ने कांग्रेस के आरोपों पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि जनता का रुझान दर्शाता है कि भाजपा की एकतरफा जीत सुनिश्चित है। उन्होंने बताया कि सरकार पहले ही प्रवर समिति की रिपोर्ट के बाद शीघ्र विशेष सत्र बुलाने की बात कर चुकी है।
भट्ट ने स्पष्ट किया कि ओबीसी आरक्षण को लेकर आयोग की रिपोर्ट के आधार पर निगम और निकाय के एक्ट में संशोधन विधेयक विधानसभा में प्रस्तुत किया गया था। कुछ विधायकों की आपत्तियों के कारण इसे प्रवर समिति को सौंपा गया है। सरकार ने पहले ही स्पष्ट किया है कि प्रवर समिति की रिपोर्ट के बाद विशेष सत्र बुलाकर विधेयक पारित किया जाएगा। विधेयक पारित होने के बाद जिलाधिकारी के माध्यम से ओबीसी आरक्षण का नोटिफिकेशन जारी किया जाएगा और उस पर आपत्तियां व सुझाव मांगे जाएंगे। सभी जनपदों से प्राप्त रिपोर्ट के बाद चुनाव कराए जाएंगे। भट्ट ने विपक्ष को राजनीतिक लाभ के लिए भ्रमित करने वाली बयानबाजियां बंद करने की सलाह दी।