उत्तराखंड में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव को लेकर असमंजस की स्थिति लगातार बनी हुई है। राज्य सरकार द्वारा पंचायत चुनाव 15 जुलाई तक संपन्न कराने का आश्वासन नैनीताल हाईकोर्ट में दिया गया था, जिसके बाद सरकार ने तैयारियां भी तेज कर दी थीं। लेकिन चुनाव की तिथि और प्रक्रिया को लेकर अब तक कोई स्पष्टता नहीं है।
राज्य के 12 जिलों में पंचायतों का कार्यकाल पिछले साल नवंबर में समाप्त हो चुका है (हरिद्वार को छोड़कर), जिसके बाद सरकार ने ग्राम, क्षेत्र और जिला पंचायतों में प्रशासकों की तैनाती की थी। इन प्रशासकों का छह महीने का कार्यकाल अब समाप्त हो चुका है। ग्राम पंचायतों में तैनात प्रशासकों का कार्यकाल 27 मई को समाप्त हो चुका है, क्षेत्र पंचायतों में 29 मई और जिला पंचायतों में 31 मई को कार्यकाल समाप्त हो रहा है।
पंचायती राज विभाग ने 26 मई को प्रशासकों के कार्यकाल को छह महीने और बढ़ाने का प्रस्ताव तैयार कर राज्यपाल के अनुमोदन के लिए राजभवन भेजा है, लेकिन अब तक इस प्रस्ताव को मंजूरी नहीं मिली है। इस स्थिति ने राज्य की पंचायत व्यवस्था को अनिश्चितता में डाल दिया है।
राज्य सरकार ने पंचायत चुनाव की दिशा में कुछ प्रयास जरूर किए हैं। पंचायती राज संशोधन अध्यादेश और एकल सदस्य ओबीसी आरक्षण को पहले ही राज्यपाल से मंजूरी मिल चुकी है। साथ ही ओबीसी आरक्षण तय करने की प्रक्रिया भी प्रारंभ की जा चुकी थी, जिससे 15 जुलाई तक चुनाव कराए जाने की संभावना जताई जा रही थी।
इस पूरी स्थिति के चलते प्रदेश की पंचायतें बिना वैध जनप्रतिनिधियों के संचालन की स्थिति में आ गई हैं, और इस पर विपक्षी दल कांग्रेस ने सरकार को घेरना शुरू कर दिया है। कांग्रेस का कहना है कि सरकार चुनाव प्रक्रिया में देरी कर लोकतांत्रिक व्यवस्था को ठप कर रही है।
अब देखना यह होगा कि राज्यपाल प्रशासकों के कार्यकाल विस्तार को मंजूरी देते हैं या सरकार जल्द चुनाव की तिथि घोषित करती है। फिलहाल पंचायत स्तर पर प्रशासनिक और लोकतांत्रिक संकट गहराता नजर आ रहा है।