उत्तराखंड के गठन की 25वीं वर्षगांठ पर विधानसभा में आयोजित विशेष सत्र में राज्य के 25 साल के विकास और चुनौतियों पर विधायकों ने अपनी-अपनी राय रखी। इस दौरान भाजपा के वरिष्ठ विधायक विनोद चमोली के पहाड़ी मुद्दों और राज्य कार्य प्रणाली पर दिए गए बयानों ने सदन में तूल पकड़ लिया और विपक्षी विधायकों के साथ बहस की स्थिति पैदा कर दी।
विनोद चमोली ने अपने भाषण की शुरुआत दलगत राजनीति से ऊपर उठकर उत्तराखंड के विकास पर बात करने की चेतावनी के साथ की। उन्होंने कहा कि राज्य गठन के समय कुछ लोगों ने उत्तराखंड बनने का विरोध किया था, लेकिन जनता ने पहली बार चुनाव कर कांग्रेस को चुनकर एनडी तिवारी को मुख्यमंत्री बनाया।
चमोली ने कहा कि उत्तराखंड की पहली सरकार ने उत्तर प्रदेश की कार्य प्रणाली को यहां लागू कर गलत कार्य संस्कृति की नींव रखी। उन्होंने आरोप लगाया कि विवेकाधीन कोष का दुरुपयोग इसी समय शुरू हुआ और आज भी राज्य की कार्य प्रणाली में इसका प्रभाव देखा जा सकता है।
विधायक ने कहा कि उत्तराखंड आज बाहरी लोगों के लिए “धर्मशाला” बन चुका है। राज्य की असली पहचान और अस्तित्व मूल निवासियों पर आधारित होना चाहिए। उन्होंने सभी विधायकों से आग्रह किया कि वे इस मुद्दे पर दलगत राजनीति से ऊपर उठकर सोचें। इस दौरान विपक्षी विधायकों वीरेंद्र जाति और रवि बहादुर के साथ चमोली की बहस भी हुई, जबकि हरिद्वार और अन्य क्षेत्र के विधायक भी बीच-बचाव करने लगे।
चमोली ने गैरसैंण को लेकर भी अपनी राय रखी। उन्होंने कहा कि इसे ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाने वाली सरकार बीजेपी की ही है, लेकिन इसे स्थायी राजधानी बनाने के लिए प्रशासनिक स्तर पर गंभीर रोड मैप तैयार किया जाना चाहिए। इस मुद्दे पर निर्दलीय विधायक उमेश कुमार के सवालों पर चमोली ने कहा, “उत्तराखंड के चौधरी मत बने, हमें बताने की जरूरत नहीं कि हमें पहाड़ के लिए क्या करना है।”
विनोद चमोली ने कहा कि राज्यहित में बोलने पर उन्हें कुछ झेलना पड़े तो वह तैयार हैं। उन्होंने कांग्रेस विधायकों को नसीहत दी कि जब राज्यहित में चर्चा हो, तो उसका समर्थन करना चाहिए, उसे राजनीति का हिस्सा नहीं बनाना चाहिए।


