उत्तराखंड के विभिन्न सरकारी विभागों में उपनल व अन्य आउटसोर्सिंग एजेंसियों के माध्यम से कार्यरत कर्मचारियों को नियमित किए जाने से जुड़ा मामला मंगलवार को हाई कोर्ट में सुनवाई के लिए आया। वरिष्ठ न्यायमूर्ति मनोज कुमार तिवारी की एकलपीठ ने सुनवाई के बाद पूर्व में दिए गए निर्देशों का हवाला देते हुए राज्य सरकार को ऐसे कर्मचारियों के नियमितीकरण के मामले में प्राथमिकता से निर्णय लेने को कहा।
सुनवाई के दौरान सरकार की ओर से बताया गया कि हाईकोर्ट की खंडपीठ पहले ही राज्य सरकार को आउटसोर्स और उपनल कर्मचारियों के नियमितीकरण पर विचार करने का सुझाव दे चुकी है। फिलहाल यह प्रस्ताव राज्य कैबिनेट के समक्ष विचाराधीन है और इस पर अंतिम निर्णय लिया जाना बाकी है।
यह मामला टिहरी जिले के पुनर्वास विभाग में वर्ष 2013 से कार्यरत आउटसोर्स कर्मचारियों से जुड़ा है। इन कर्मचारियों ने कोर्ट में याचिका दाखिल कर कहा कि वे पिछले 12 वर्षों से मात्र ₹1700 मानदेय पर काम कर रहे हैं, जबकि उनसे विभाग का पूरा कार्य लिया जा रहा है। कर्मचारियों का कहना है कि वे इस पद के लिए सभी आवश्यक योग्यता रखते हैं और कई बार नियमितीकरण के लिए विभाग को आवेदन दे चुके हैं, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई।
पहले हाईकोर्ट की खंडपीठ ने आदेश दिया था कि वर्ष 2013 से कार्यरत आउटसोर्स कर्मचारियों के नियमितीकरण पर राज्य सरकार चार महीने के भीतर निर्णय ले। हालांकि, निर्धारित समय बीत जाने के बाद भी सरकार की ओर से कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया।
नवीन सुनवाई में अदालत ने राज्य सरकार को याद दिलाया कि मामला लंबे समय से लंबित है और अब इस पर प्राथमिकता से निर्णय लिया जाना चाहिए। साथ ही, कोर्ट ने निदेशक पुनर्वास को याचिकाकर्ताओं के प्रत्यावेदन पर विचार करने के निर्देश दिए हैं।
यह याचिका टिहरी निवासी सुबोध कुरियाल सहित अन्य कर्मचारियों की ओर से दाखिल की गई थी, जो वर्ष 2013 से पुनर्वास विभाग में आउटसोर्स एजेंसी के माध्यम से कार्यरत हैं।


