उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने राज्य के निजी स्कूलों द्वारा मनमाने ढंग से वसूली जा रही फीस को लेकर गंभीर रुख अपनाया है। अदालत ने स्पष्ट निर्देश दिए हैं कि इस मुद्दे का व्यापक प्रचार-प्रसार किया जाए ताकि जिन स्कूलों पर आरोप लगे हैं, उन्हें अपना पक्ष रखने का उचित अवसर मिल सके। अदालत ने इस विषय को अखबारों में प्रकाशित कराने का आदेश भी जारी किया है।
यह आदेश एक जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान दिया गया, जिसमें निजी स्कूलों द्वारा ट्यूशन फीस के अलावा एडमिशन, यूनिफॉर्म और रजिस्ट्रेशन के नाम पर अतिरिक्त वसूली की शिकायत की गई थी। अब इस मामले की अगली सुनवाई 31 अक्टूबर 2025 को होगी।
यह याचिका देहरादून के अधिवक्ता जसविंदर सिंह द्वारा दाखिल की गई है। याचिकाकर्ता का कहना है कि कई निजी स्कूल सरकार के तय मानकों को नजरअंदाज कर रहे हैं और अभिभावकों पर अनावश्यक आर्थिक बोझ डाल रहे हैं।
इससे पूर्व अदालत ने राज्य सरकार से जवाब तलब किया था और साथ ही निर्देश दिया था कि राज्य के सभी स्कूल एसोसिएशन को भी इस मामले में पक्षकार बनाया जाए, ताकि कोई भी पक्षपात न हो और सभी संबंधित संस्थाएं अपना पक्ष रख सकें।
क्या कहते हैं सरकारी नियम?
सरकार द्वारा वर्ष 2017 में लागू नियमों के अनुसार:
- एक बार एडमिशन फीस जमा करने के बाद दोबारा नहीं ली जा सकती।
- कॉशन मनी पर किसी प्रकार का अतिरिक्त शुल्क नहीं लगाया जा सकता।
- स्कूल फीस में वृद्धि केवल तीन वर्षों में एक बार और अधिकतम 10% तक ही की जा सकती है।
- किसी भी ट्रस्ट, समिति या स्कूल को चंदा (डोनेशन) वसूलने की अनुमति नहीं है।