भारतीय अमेरिकी सांसदों ने भारत में मानवाधिकार से जुड़े मुद्दों पर भारत को उपदेश देने से परहेज करने की नसीहत दी है। सांसदों ने कहा कि इस मुद्दे पर भारत से वार्ता की जरूरत है।
भारतीय अमेरिकी सांसद रो खन्ना ने डेमोक्रेटिक थिंक-टैंक ‘इंडियन अमेरिकन इम्पैक्ट’ के ‘देसी डिसाइड्स’ सम्मेलन में भारतीय अमेरिकी समुदाय के लोगों से कहा, ‘‘भारत 100 से अधिक वर्षों तक उपनिवेश रहा है। जब हम मानवाधिकारों के बारे में बातचीत करते हैं। इस मुद्दे पर वहां के विदेश मंत्री एस जयशंकर या किसी अन्य के साथ बातचीत करते हैं तो आपको यह समझना होगा कि यह केवल भारत को उपदेश देने की तरह लगता है।”
रो खन्ना ने कहा कि भारत को ऐसा लगता है कि औपनिवेशिक ताकतें सैकड़ों वर्षों से हमें उपदेश दे रही हैं। ऐसा उपदेश देना ठीक नहीं होगा। खन्ना ने कहा, ‘‘मुझे लगता है कि भारत के साथ यह बातचीत करना अधिक रचनात्मक नजरिया होगा कि यहां हमारे लोकतंत्र में क्या खामियां हैं, आपके लोकतंत्र में क्या खामियां हैं और हम सामूहिक रूप से लोकतंत्र और मानवाधिकारों को कैसे आगे बढ़ा सकते हैं।’’
‘कांग्रेशनल इंडिया कॉकस’ के सह अध्यक्ष रो खन्ना के साथ इस संवाद में भारतीय अमेरिकी सांसद प्रमिला जयपाल और डॉ. एमी बेरा भी शामिल हुए। इसका संचालन एबीसी की राष्ट्रीय संवाददाता जोहरीन शाह ने किया। शाह ने भारतीय अमेरिकी सांसदों से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के मुस्लिम समुदाय से संबंधों को लेकर सवाल किया। बेरा ने खन्ना की बात से सहमति जताते हुए कहा, ‘‘मैंने भी भारतीय विदेश मंत्री से यही कहा है। यदि भारत धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र के रूप में अपनी पहचान खो देता है तो शेष विश्व के इसे देखते के तरीके में बदलाव आ सकता है।’’
उन्होंने यह भी कहा कि ऐसा जरूरी नहीं है कि अमेरिका में पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का राष्ट्रपति रहना भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सत्ता में रहने जैसा ही हो। उन्होंने कहा, ‘‘क्योंकि हमारे यहां अब भी एक जीवंत लोकतंत्र है। डेमोक्रेटिक पार्टी के रूप में हमारे पास एक जीवंत विपक्षी दल है। हम अब भी प्रेस की स्वतंत्रता में विश्वास करते हैं और ये सभी चीजें हैं जो मुझे भारत के भविष्य को लेकर चिंतित करती हैं।’’