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दो टूक…..CAA के खिलाफ आंदोलन पर चेतावनी, रोजाना 1,643 करोड़ वसूलेंगे जुर्माना

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जब से केंद्र सरकार ने ये संकेत दिए हैं कि लोकसभा चुनावों के लिए आदर्श आचार संहिता लागू होने से पहले ही देशभर में नागरिकता संशोधन कानून (CAA) लागू हो सकता है, तब से असम में भाजपा विरोधी विपक्षी दलों ने उसका खुलकर विरोध करना शुरू कर दिया है। गुरुवार को राज्य में 16 दलों वाले संयुक्त विपक्षी मंच असम (UOFA)ने राज्यपाल गुलाब चंद कटारिया के माध्यम से राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को एक ज्ञापन सौंपा है और उनसे CAA को लागू करने से रोकने का आग्रह किया है। विपक्षी मोर्चे ने ये भी कहा है कि अगर उनकी मांगें नहीं मानी गईं तो वे राज्य भर में ‘लोकतांत्रिक जन आंदोलन’ करेंगे।

विपक्षी दल इस कानून को अवैध आप्रवासियों के सवाल पर असम समझौते के प्रावधानों के उल्लंघन के रूप में देखते हैं। 2019-2020 में CAA के खिलाफ असम में सबसे उग्र विरोध प्रदर्शन देखे गए थे। UOFA ने कहा, ”CAA न केवल असंवैधानिक है बल्कि यह इतिहास, संस्कृति, सामाजिक ताने-बाने, अर्थव्यवस्था और असमिया लोगों की पहचान को खतरे में डालकर 1985 के ऐतिहासिक असम समझौते को भी रद्द करने वाला है।”

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इस बीच, असम के डीजीपी ने जीपी सिंह ने सोशल मीडिया एक्स पर एक पोस्ट में विपक्षी मोर्चे के संभावित असम बंद पर भारी भरकम जुर्माने की वसूली की चेतावनी दी है। हालांकि, उन्होंने अपने पोस्ट में विपक्ष बंद के आह्वान का कोई उल्लेख नहीं किया। सिंह ने एक्स पर लिखा,“…असम का GSDP (सकल राज्य घरेलू उत्पाद) 5,65,401 करोड़ रुपये आंका गया है, एक दिन की बंदी से राज्य को होने वाला नुकसान लगभग 1,643 करोड़ रुपये होगा जो उन लोगों से वसूला जाएगा जो माननीय गौहाटी उच्च न्यायालय के आदेश के पैरा 35(9) के अनुसार इस तरह के बंद का आह्वान करेंगे।” डीजीपी ने 2019 में CAA के खिलाफ हुए आंदोलनों के बीच हाई कोर्ट के आदेश के हवाले से ये चेतावनी दी है।

दूसरी तरफ, असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा ने कहा कि अब CAA के खिलाफ किसी आंदोलन की कोई प्रासंगिकता नहीं है। उन्होंने कहा कि अगर किसी को इस कानून से ऐतराज है तो उन्हें सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाना चाहिए। सरमा ने एक संवाददाता सम्मेलन में कहा कि संसद, जिसने कानून पारित किया था, ‘सर्वोच्च नहीं’ है क्योंकि शीर्ष अदालत इसके ऊपर है और वह किसी भी कानून को रद्द कर सकती है जैसा कि उसने चुनावी बॉन्ड के मामले में किया।

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उन्होंने कहा, ‘‘सीएए के खिलाफ प्रदर्शन की कोई प्रासंगिकता नहीं है क्योंकि आंदोलन संसद द्वारा पारित किसी कानून के संबंध में कारगर नहीं हो सकते। बदलाव केवल सुप्रीम कोर्ट में हो सकता है जैसा कि उसने भाजपा द्वारा लागू चुनावी बॉन्ड के मामले में किया।’’ उन्होंने कहा कि न्यायपालिका को किसी कानून या अधिनियम में बदलाव का अधिकार है। इसके अलावा संसद का सत्र अनिश्चितकाल के लिए स्थगित भी हो चुका है और अगले चार महीने तक कोई भी सीएए को निष्प्रभावी करने के लिए संसद के दोनों सदनों की बैठक नहीं बुला सकता। इसलिए विपक्षी दलों के पास सुप्रीम कोर्ट जाने के अलावा कोई विकल्प नहीं है।

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16 विपक्षी दलों ने गवर्नर को सौंपे अपने ज्ञापन में कहा है, ”हम आपको सूचित करते हैं कि अगर भारत सरकार इन मांगों पर ध्यान नहीं देती है तो हम विपक्षी राजनीतिक दलों और असम के लोगों के पास सरकार को मजबूर करने के लिए लोकतांत्रिक जन आंदोलन के अलावा कोई विकल्प नहीं बचेगा।” यूओएफए ने बुधवार को घोषणा की थी कि इस विवादास्पद अधिनियम के लागू होने के अगले ही दिन राज्यव्यापी बंद का आह्वान किया जाएगा, जिसके बाद जनता भवन (सचिवालय) का ‘घेराव’ किया जाएगा।

विपक्षी मोर्चे यूओएफए में कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी), आम आदमी पार्टी (आप), रायजोर दल, एजेपी, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा), भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा), ऑल इंडिया फॉरवर्ड ब्लॉक (एआईएफबी), शिवसेना-उद्धव बालासाहेब ठाकरे (शिवसेना-यूबीटी), राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी-शरद चंद्र पवार(राकांपा-शरद पवार), समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय जनता दल जैसी पार्टियां शामिल हैं।

हिल दर्पण डेस्क

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