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उत्तराखंड…जब दूल्हे के घर बारात लेकर पहुंची दुल्हन, जानें वजह

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‘ले जाएंगे, ले जाएंगे, दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे’—1975 में आई फिल्म ‘चोरी चोरी’का ये मशहूर गीत आज भी शादियों और बारातों में गूंजता है। लेकिन रविवार को उत्तरकाशी के कलीच गांव में यह गीत मानो बेमानी हो गया, जब एक दुल्हन खुद बारात लेकर दूल्हे के घर पहुंची।

जौनसार-बावर क्षेत्र में ऐसी शादियां कभी आम हुआ करती थीं, मगर बंगाण क्षेत्र में करीब पांच दशक पहले यह परंपरा लुप्त हो गई थी। रविवार को जब इस रीति का पुनः आयोजन हुआ तो स्थानीय ग्रामीणों के साथ-साथ बाहर से आए मेहमान भी इसके गवाह बने। सोमवार को बाराती लौट जाएंगे, लेकिन दुल्हन अब अपने ससुराल में ही रहेगी।

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उत्तरकाशी ज़िले की मोरी तहसील के आराकोट क्षेत्र के कलीच गांव में रविवार की रात पूर्व प्रधान कल्याण सिंह चौहान के पुत्र मनोज की शादी हुई। खास बात यह रही कि ग्राम जाकटा के जनक सिंह की पुत्री कविता ढोल-नगाड़ों और पारंपरिक वाद्य यंत्रों के साथ बारात लेकर कलीच पहुंचीं। दूल्हे पक्ष ने भी पारंपरिक रीति-रिवाजों के साथ उनका स्वागत किया।

इस शादी की दूसरी बड़ी खासियत यह रही कि इसमें दहेज या किसी प्रकार की आर्थिक मांग नहीं की गई। दूल्हे के पिता कल्याण सिंह, जो क्षेत्र में उन्नतिशील किसान और सामाजिक प्रगतिशीलता के लिए जाने जाते हैं, ने कहा—“अगर हमें अपनी संस्कृति को बचाना है तो हमें पुराने रीति-रिवाजों को फिर से जिंदा करना होगा।”

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उन्होंने बताया कि इस शादी के माध्यम से उन्होंने विस्मृत होती परंपरा को पुनर्जीवित करने का प्रयास किया है।

ऐसे विवाह को स्थानीय बोली में ‘जोजोड़ा कहा जाता है, जिसका अर्थ है—जो जोड़ा भगवान स्वयं बनाते हैं। बारात में शामिल लोगों को‘जोजोड़िये’ कहा जाता है।
इस परंपरा का उद्देश्य था बेटी के पिता पर आर्थिक बोझ कम करना और विवाह को समानता के आधार पर निभाना। अब नई पीढ़ी इस परंपरा को दोबारा जीवित करने की दिशा में कदम बढ़ा रही है।

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‘रवाई से उत्तराखंड’ पुस्तक के लेखक और इतिहासकार **प्रयाग जोशी** बताते हैं कि दुल्हन द्वारा बारात लाने की यह परंपरा 1970 के दशक के बाद धीरे-धीरे समाप्त हो गई।
जोशी के अनुसार—

> “1970 के बाद आरक्षण व्यवस्था के चलते क्षेत्र में आर्थिक और सामाजिक हालात तेजी से बदले। इसी बदलाव का असर परंपराओं पर भी पड़ा और कई लोक-रीतियां विलुप्त होने लगीं।”

अब, आधी सदी बाद, कलीच गांव में कविता और मनोज की शादी ने इस भूली-बिसरी परंपरा को एक बार फिर नई सांस दे दी है।

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हिल दर्पण डेस्क

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